लोग प्रधानमंत्री को सजा देने का इंतजार कर रहे हैं: शिवसेना

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नई दिल्ली: नोटबंदी के दो साल पूरे होने के मौके पर शिवसेना ने पीएम मोदी पर निशाना साधा है। शिवसेना ने कहा कि जनता प्रधानमंत्री को दो साल पहले नोटबंदी की घोषणा करने के लिए सजा देने का इंतजार कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को 1,000 और 500 रुपये के नोट को तत्काल प्रभाव से चलन से बाहर कर दिया था। बीजेपी नीत केंद्र और राज्य सरकार में सहयोगी शिवसेना ने दावा किया कि नोटबंदी बिल्कुल असफल रही क्योंकि इससे कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ।

शिवसेना की प्रवक्ता मनीषा कायंदे ने कहा, वित्त मंत्री कहते हैं कि ज्यादा लोगों को कर के दायरे में लाया गया, लेकिन लाखों लोगों की इस वजह से नौकरियां चली गई। ऐसा कहा गया था कि आतंकवाद का खात्मा होगा और नकली नोट की समस्या खत्म हो जाएगी, लेकिन यह भी नहीं हो सका। प्रवक्ता ने कहा, दो साल के बाद स्थिति इतनी खराब है कि लोग प्रधानमंत्री को सजा देने का इंतजार कर रहे हैं। कायंदे ने दावा किया कि केंद्रीय वित्त मंत्री और आरबीआई गवर्नर के बीच अनबन से देश में आर्थिक स्थिति और बदहाल होगी और विदेशी निवेशक यहां निवेश करने के प्रति चिंतित होंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के बाद कहा था कि भाइयों बहनों, मैंने सिर्फ देश से 50 दिन मांगे हैं। 50 दिन। 30 दिसंबर (2016) तक मुझे मौका दीजिए मेरे भाइयों बहनों। अगर 30 दिसंबर के बाद कोई कमी रह जाए, कोई मेरी गलती निकल जाए, कोई मेरा गलत इरादा निकल जाए। आप जिस चैराहे पर मुझे खड़ा करेंगे, मैं खड़ा होकर। देश जो सजा देगा वो सजा भुगतने को तैयार हूं। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने नोटबंदी को त्रासदी करार देते हुए इसकी तुलना अमेरिका पर हुए आतंकी हमले 9/11 से की। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने नोटबंदी के औचित्य पर सवालिया निशान लगाते हुए इसे देश की अर्थव्यवस्था पर खुद से दिया गया गहरा घाव करार दिया।

केजरीवाल ने ट्विटर पर कहा, मोदी सरकार के वित्तीय घोटालों की सूची अंतहीन है, नोटबंदी भारतीय अर्थव्यवस्था को खुद से दिए गए गहरे घाव की तरह है। दो साल पूरा होने के बाद भी यह रहस्य बना हुआ है कि देश को इस आपदा में क्यों धकेला गया था। आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता राघव चड्ढा ने कहा कि हम भारतीय 8/11 को हमारी अर्थव्यवस्था को झकझोरने वाली त्रासदी के रूप में याद करते हैं। उन्होंने नोटबंदी को आजाद भारत की सबसे बड़ी आर्थिक नाकामी करार दिया और दावा किया कि इसकी वजह से 35 लाख लोगों की नौकरियां गईं, जबकि 115 लोगों की लंबी कतारों में मौत हो गई जिसके लिए कोई मुआवजा नहीं दिया गया।

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