जंगली जीवों के लिए खतरनाक हो रहे मनुष्य, खत्म हो गई 60 प्रतिशत प्रजातियां

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नई दिल्ली: मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर अक्सर चिंता जातई जाती रही है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने अपनी लिविंग लैनेट रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट ने दुनिया को चेतावनी दी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 1970 से 2014 के बीच मानव गतिविधियों के कारण धरती पर रह रहे सभी जीवों में से 60 फीसदी की मौत हो गई। जीवों की इस लिस्ट में स्तनधारी, पक्षियां, मछलियां, सरीसृप और उभयचरों की आबादी शामिल है।

इस सच्चाई के बारे में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अंतरराष्ट्रीय डायरेक्टर जनरल मार्को लैम्बर्टिनी ने एएफपी को बताया कि स्थिति बहुत खराब है और यह बदतर होती जा रही है। लिविंग प्लैनेट ने हाल में पूरी दुनिया में 16,700 आबादी में से 4000 से अधिक पशु प्रजातियों पर डेटा आधारित व्यापक शोध और सर्वे किया। एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, लैटिन अमेरिका ने मानव गतिविधियों के सबसा बुरा प्रभाव देखने को मिला है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अवधि के दौरान इस क्षेत्र में वन्यजीवन में 90 प्रतिशत की कमी आई है। पानी के जीव भी बेहतर स्थिति में नहीं हैं क्योंकि वे 80 प्रतिशत की खतरनाक दर से मर रहे हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट में दिए गए डेटा बताता है कि बड़े पैमाने पर जानवर विलुप्त की ओर आगे बढ़ रहे हैं। पिछले आधा बिलियन सोलों में यह छठी बार है कि पृथ्वी ने अपने वाइल्डलाइफ को खोया है। स्थिति यह है कि मानवों के चलते कुछ सौ वर्षों में 100 से 1000 गुना अधिक बार जानवरों की प्रजातियां समाप्त हुई हैं।

सातौर पर कहा जाए तो ऐसा कर हम खुद के विनाश की ओर लेकर जा रहे हैं। जमीन और समुद्र के जीवों का अस्तित्व खतरे में हैं। कई प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं। हम पारिस्थितिक असंतुलन के बेहद करीब हैं। यह स्थिति हमें बताता है कि बढ़ती जनसंख्या के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो जाएगी। दुनिया में बड़े पैमाने पर भुखमरी फैल सकती है। जलवायु परिवर्तन तेजी से बढ़ रहा है। भले ही मनुष्य 1.5 पर ग्लोबल वार्मिंग को रोकें। लेकिन यह 70-90 प्रतिशत समुद्री जीवों को बचाने के लिए काफी नहीं है।

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