कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, नाबालिग बहनों से रेप के बाद हत्या मामले में सुनाई फांसी की सजा

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देहरादून: दो सगी नाबालिग बहनों की बलात्कार के बाद हत्या करने के मामले में पोक्सो अधिनियम के अंतर्गत दोषी को मौत की सजा सुनाई गई है।

मामले के अनुसार, 15 जून 2017 को कोतवाली ऋषिकेश मैं शिकायतकर्ता सीता श्रेष्ठ पत्नी सूरत श्रेष्ठ, निवासी किराएदार अमरजीत सिंह पंजाब एंड सिंध बैंक के पास, श्यामपुर के द्वारा प्रार्थना पत्र दिया गया कि, किसी अज्ञात व्यक्ति के द्वारा मेरी दो नाबालिग लड़कियों की हत्या कर दी गई है, जिनकी उम्र क्रमशः 13 वर्ष व 4 वर्ष थी। जिस पर तत्काल ऋषिकेश पुलिस द्वारा मौके पर जांच की गई तथा कोतवाली ऋषिकेश में मुकदमा अपराध संख्या 332/17 धारा 302/376/ व 5/6 पोक्सो अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत किया गया।

जिसके निस्तारण के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, देहरादून द्वारा मामले की गंभीरता को देखते हुए कोतवाली ऋषिकेश पर नियुक्त प्रशिक्षु आईपीएस निहारिका भट्ट के नेतृत्व में पुलिस लाइन देहरादून से निरीक्षक प्रवीण सिंह कोश्यारी को उक्त मामले के निस्तारण के लिए आदेशित किया गया, जिस पर अग्रिम कार्यवाही करते हुए पुलिस द्वारा जांच के दौरान घटनास्थल को देखकर मौके पर मिले साक्ष्यों के के आधार पर मौके से अभियुक्त सरदार परवान सिंह पुत्र सरदार छोटे सिंह, निवासी समीर पुर थाना नजीबाबाद बिजनौर, हाल- सेवक गुरुद्वारा कलीधर सभा के पास श्यामपुर ऋषिकेश, को गिरफ्तार किया गया।

पूछताछ करने पर अभियुक्त परवान सिंह के द्वारा अपने अपराध को स्वीकार कर लिया गया। पुलिस ने विवेचना के दौरान मौखिक, परिस्थिति जनक तथा वैज्ञानिक साक्ष्यों का संकलन किया। उसके बाद पर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर इस मामले में अभियुक्त के विरुद्ध 2 सितम्बर 2017 को आरोप पत्र न्यायालय को प्रेषित किया गया। आरोप पत्र में कुल 14 गवाह रखे गए थे।

मुकदमे मे जांचकर्ता द्वारा समय-समय पर उक्त केस की पैरवी करते हुए समस्त साक्षियों की साक्ष्य करवाकर गवाही कराई गई। जिस पर पोक्सो अधिनियम न्यायालय द्वारा आज अभियुक्त परवान सिंह को उक्त मामले में 30 हजार आर्थिक जुर्माने के साथ ही सजा-ए-मौत (फांसी) की सज़ा सुनाई गई।

फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट स्पेशल पोस्को में यह फैसला सुनाने वाले जज रमा पाण्डेय हैं। इस केस में सरकारी वकील भारत भूषण नेगी रहे। साथ ही नियमानुसार इस केस की फाइल को हाई कोर्ट नैनीताल भेज दी गई है, क्योंकि निचली कोर्ट से फांसी शब्द दिए जाने के बाद हाई कोर्ट से ही उस पर मुहर लगती है।

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