व्यक्तिगत हित को जनहित याचिका बताना पड़ा भारी, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पर लगाया पांच लाख जुर्माना

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नैनीताल: कालागढ़ टाइगर रिज़र्व क्षेत्र से अवैध कब्जे हटाने को याचिका दायर करना याची को भारी पड़ गया। कोर्ट ने स्वयं याची को भी अवैध कब्जा धारक पाते हुए उसका भी आवास खाली कराने और उसकी जनहित याचिका को व्यक्तिगत हित से दायर किया मान कर उस पर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया।

कोर्ट ने कॉर्बेट नेशनल पार्क और राजाजी पार्क में अवैध खनन और शिकार की घटनाओं पर नजर रखने के लिए तीन माह के भीतर ड्रोन और आधुनिक सीसीटीवी कैमरे लगाने के भी निर्देश दिए।  हाईकोर्ट ने टाइगर रिजर्व घोषित क्षेत्र कालागढ में अनाधिकृत रूप से रह रहे लोगों के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता पर पांच लाख का जुर्माना लगाते हुए सरकारी आवासों पर रह रहे लोगों से तीन सप्ताह के भीतर आवास खाली करने के‌ निर्देश‌ दिए हैं। इनमें स्वयं याची भी शामिल है। वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।

मामले के अनुसार कार्बेट नेशनल पार्क के न्यू कालोनी कालागढ के क्वार्टर नंबर 13-134 निवासी विश्वनाथ सिंह ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नेशनल टाइगर कन्जरवेशन अथोरटी ने 26 फरवरी 2010 को कालागढ क्षेत्र के ‌करीब 1288 वर्ग किमी क्षेत्र को टाईगर रिजर्व घोषित कर दिया था। लेकिन अथारिटी ने इस क्षेत्र को टाईगर रिजर्व घोषित करने से पूर्व इस क्षेत्र में रह रही करीब दस हजार की आबादी की आपत्तियां दर्ज नहीं कीं। इसलिए इस क्षेत्र को टाइगर रिजर्व से बाहर कर इस नोटिफिकेशन को निरस्त कर दिया जाए। जनहित याचिका का विरोध करते हुए सरकार ने अदालत को बताया‌ कि, जिस क्षेत्र को टाईगर रिर्जव घोषित किया गया है वह अधिसूचना वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत जारी की गई है। सरकार की ओर से यह भी बताया कि स्वयं याचिकाकर्ता सरकारी आवास में अनाधिकृत रूप से रह रहा है। इसलिए यह जनहित याचिका न होकर इसमें व्यक्तिगत हित है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दिसंबर 2013 व एनजीटी के 21 दिसंबर 2017 के आदेशों की जानकारी कोर्ट को दी। इन आदेशों में टाईगर रिजर्व क्षेत्र में रह रहे लोगों की ओर से जंगली जानवरों को डराने व उनकी हिंसा करने का जिक्र है साथ ही कई बाघों की हत्या करने का भी उल्लेख किया है। पक्षों की सुनवाई के दौरान कोर्ट में न अधिवक्ता मौजूद था और न ही याचिकाकर्ता इसलिए कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता का व्यक्तिगत हित होते हुए यह जनहित याचिका दायर की है। इन तथ्यों को ध्यान में रखकर कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया। साथ ही न्यायालय ने तीन सप्ताह के भीतर यह सरकारी आवास में किए गए कब्जे को खाली कराने के निर्देश‌ मुख्य सचिव को दिए।  कोर्ट ने बाघों की अस्वाभाविक मृत्यु की एसडीएम द्वारा जांच कराने, विसरा सुरक्षित रखने और पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी कराने को भी कहा।

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