पलायन को चुनौती देता पहाड़ का लाल विजय सेमवाल

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रुद्रप्रयाग: कभी बच्चों की किलकारियों से गूंजने वाले चौक आज खामोश हैं, तो फसलों से लहलहाने वाले खेत बंजर पडे हैं। भव्य मकान खण्डहर में तब्दील हो गये, तो रास्ते भी अब कंटीले दिखने लगे हैं, यह हकीकत है जिला मुख्यालय से महज 5 किमी की दूरी पर बसे बर्सू गांव की। जो आज पलायन की मार से अपने अस्तित्व को भूल गया है। अब गांव के ही एक व्यक्ति ने गांव को फिर से आबाद करने का बीडा उठा लिया है और स्वयं के संसाधनों से यहां स्वरोजगार कर अन्य लोगों को भी गांव में दोबारा बसागत करने के लिए प्रेरित कर रहा है।

रुद्रप्रयाग शहर से महज पांच किमी की दूरी पर स्थित है बर्सू गांव। करीब 20 वर्ष पहले यहां पर 85 परिवार बसते थे। मगर नागरिक सुविधाओं के अभाव में गांव खाली होता गया और आज खण्डहर में तब्दील हो गया है। गांव के लोगों का कहना है कि गांव में सुविधाएं न होने के कारण पलायन हुआ है और अब यदि सरकारें गांव में आवश्यक सुविधाएं मुहैया करवाती हैं तो गांव फिर से आबाद हो सकता है।

गांव के रहने वाले विजय सेमवाल ने अब गांव को आबाद करने का बीडा उठा दिया है। विजय ने यहां ग्रामीणों के खेतों को खुद जोतकर उन्हें खेती लायक बनाया है और इन खेतों में फल सब्जी उगाकर उससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यही नहीं मुर्गी पालन, खरगोस पालन के साथ दुग्ध व्यवसाय कर अपनी आजीविका को चला रहे हैं। स्वयं के संसाधनों से गांव में पानी की व्यवस्था कर वहां अब सभी नागरिक सुविधाएं जुटाई जा रही हैं। वहीं कई ग्रामीण भी विजय का अनुकरण कर रहे हैं और गांव में वापस बसागत करने की दिशा में अपने भवनों को तैयार करने लग गये हैं।
ऐसे में सरकार पलायन आयोग बनाकर भले ही कागजों में कार्य योजनाएं तैयार कर रही हो, लेकिन विजय ने जिस तरह से धरातल पर कार्य कर सरकार को आईना दिखाया है और ग्रामीणों को गांव आने का न्यौता दिया है, वह वास्तव में काबिलेतारीफ है। सरकार को भी ऐसे लोगों से सबक लेनी चाहिए जिससे गांव आबाद हो सकें और पलायन आयोग के गठन की उत्तराखण्ड में सार्थकता दिख सके।

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