उत्तराखंड: यहाँ घराट विलुप्त नहीं बल्कि हुए आधुनिक, चक्की के साथ मिलती है बिजली भी..

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मसूरी: पहाड़ों में घराट एक परमपरागत जलचलित यन्त्र रह गया है, जो कि गेंहू, मक्का आदि अनाज पीसने में काम में लाया जाता रहा है। वहीँ वर्तमान में विधुत चालित आटा चक्कीयों के प्रयोग से घराट का प्रचालन कम हो गया है लेकिन, मसूरी से लगे ‘बंगलो की कंडी’ में आज भी लोग घराट (पनचक्की) में आटा पिसने का कम करते हैं। पनचक्की यानि घराट में आटा पिसने का कार्य यहाँ परम्परागत रूप से किया जाता रहा है।

यहाँ दूर-दराज के गाँवों में जब सड़क-बिजली जैसी सुविधाएं नहीं पहुंची थी, उस दौर में यहाँ गाँव के नालों-खालों से निकलने वाली जल धाराओं के सहारे आटा, मसाले, दाल आदि पीसने का कार्य घराट के सहारे चला करता था और आज भी चल रहा है।

वर्तमान में आधुनिकता के दौर में जहाँ अधिकतर घराट बंद हो चुके हैं, वहीँ यहाँ अब घराट का ही आधुनिकीकरण कर आटा पिसने के कार्य के साथ इससे विधुत उत्पादन भी किया जा रहा है। जिससे गाँव को रोशनी भी मिल रही है। यहाँ इस तरह के करीब 4 से 6 घराट हैं, जिससे ग्रामीणों को आटा पिसने के साथ-साथ बिजली भी मिल रही है। वहीँ भारत सरकार के उर्जा विभाग से आर्थिक अनुदान मिलने से बिजली उत्पादन के लिए प्रेरित किया गया है।

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