स्मृति विशेषः आज भी युवाओं के दिलों में जिंदा हैं भगत सिंह

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उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?

दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।

अपनी शायरियों के माध्यम से युवाओं की रग-रग में देशभक्ति पैदा करने वाले शहीद भगत सिंह को कौन नहीं जानता। जेल में रहने के बावजूद भी शहीद भगत सिंह ने अपने देश के प्रति कृतज्ञयता को कम नहीं होने दिया। जेल के दिनों में शहीद भगत सिंह ने लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त किए। अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। भगत सिंह ने जेल में ही अंग्रेजी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था मैं नास्तिक क्यों हूं?

जीवन-परिचय

भगत सिंह संधु का जन्म 27-28 सितंबर 1907 को हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक जात सिक्ख परिवार था। अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। काकोरी काण्ड में राम प्रसाद बिस्मिल सहित 4 क्रान्तिकारियों को फाँसी व 16 अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि पण्डित चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड गये और उसे एक नया नाम दिया हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन। इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था। फरवरी 1928 में भारत में साइमन कमीशन की यात्रा के दौरान, लाहौर में साइमन कमीशन की भारत यात्रा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहा था। इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान, लाला लाजपत राय लाठीचार्ज में घायल हो गए थे और बाद में इस वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी। लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए, भगत सिंह ने ब्रिटिश अधिकारी उप महानिरीक्षक स्कॉट को, जो उनकी(लाला लाजपत राय ) हत्या के लिए ज़िम्मेदार था, मारने का फैसला किया। लेकिन उन्होंने गलती से बजाये उसको (स्कॉट) मारने के, सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर गोली मार दी ।

भगत सिंह ने  8 अप्रैल 1929 के केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंक दिया और उसके बाद गिरफ्तारी दी। भगत सिंह, सुखदेव और राज गुरु को उनकी विध्वंसक गतिविधियों के लिए एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। जिसके बाद उन सभी को 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया गया था।  लेकिन फांसी का खौफ भी तीनों की हिम्मत को डिगा न सकी और फांसी से पहले तीनों ने बेख़ौफ़ यह देशभक्ति गाना गाया……..

मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे;
मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला।।

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