Video:फीस जमा कराने के सरकार के निर्देश पर अभिभावकों का ज़बरदस्त विरोध, कहा बिना काम के, कहाँ से लाएंगे फीस

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देहरादून: आज अभिभावक संघ एसोसिएशन ने सरकार के कल के उस फैसले का ज़रबरदस्त विरोध किया जिसमे शिक्षा सचिव द्वारा अभिभावकों को फीस जमा करने के निर्देश हुए है। अभिभावक संघ एसोसिएशन का कहना है कि शिक्षा मंत्री द्वारा लोक डाउन अवधि में फीस न वसूलने के पूर्व आदेश दिनांक 25 मार्च 2020, के आदेश को प्रोग्रेसिव स्कूल एसोसिएशन द्वारा स्कूलों में अपने कर्मचारियों को वेतन भुगतान में असमर्थ होने के भ्रामक कथन पर एक तरफा निर्णय लिया गया है।

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अभिभावक संघ एसोसिएशन के अध्यक्ष राम कुमार सिंघल ने कहा है कि अभिभावकों की लॉक डाउन अवधि में बगैर कामकाज, बगैर आमदनी के गुजर करने के कारन फीस देने में असमर्थ होने के तथ्य को नजर अंदाज करते हुए पूर्व आदेश को संशोधित कर स्कूलों को अभिभावकों पर राष्ट्रीय आपदा के समय में भी दबाव बनाकर फीस वसूलने का रास्ता प्रशस्त ने कर दिया है। जबकि अभिभावकों में अधिकांश अभिभावक मध्य मवर्गीय, छोटे-मोटे रोजगार करने वाले या प्राइवेट जॉब करने वाले हैं। जिनकी आय की कोई निश्चित साधन भी नहीं है। दैनिक आमदनी के आधार पर सभी अपने परिवारों का लालन-पालन कर रहे हैं और ऐसे विपरीत काल में सरकार के सभी आदेशों का पालन कर रहे हैं।

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संघ के अध्यक्ष राम कुमार सिंघल का कहना है कि इस लॉक डाउन की परिस्तिथि में वह कैसे यह नए शैक्षिक सत्र में एक साथ पुस्तकों की खरीद, ट्यूशन फीस के साथ साथ स्कूल द्वारा लिए जाने वाले अन्य शुल्क जैसे प्रवेश शुल्क, साइंस फीस, कंप्यूटर फीस, लैब शुल्क, गतिविधि शुल्क आदि की भारी-भरकम राशि को अदा करेंगे। अभिभावकों ने कहा कि जब इस अवधि में बच्चों द्वारा स्कूल में जाकर शिक्षा ग्रहण नहीं की जा रही है तो इन अतिरिक्त शुल्कों को देने को कैसे बाध्य किया जा सकता है।

अभिभावक संघ एसोसिएशन का कहना है कि शिक्षा मंत्री द्वारा अभिभावकों को इस अवधि की फीस माफी का लाभ तो नहीं दिलवाया गया, उल्टे लूट का रास्ता दिखा दिया गया। यदि उसी मानवीय भाव से शिक्षा मंत्री द्वारा अभिभावकों का पक्ष जानकर इस समस्या में मार्ग खोजने का प्रयास किया होता, तो अभिभावक खुद को ठगा महसूस ना समझते और ना ही उनके कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगता। दोनों पक्षों के साथ बैठकर एक बीच का मार्ग निकाला जा सकता था। इसी तत्परता से 1 अप्रैल 2020 से सभी बोर्डों में एनसीईआरटी सिलेबस या राज्य द्वारा निर्धारित सिलेबस की पुस्तकों से पढ़ाने की बाध्यता के राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आदेश 9 मई 2019 को लागू करा कर अभिभावकों को महंगी पुस्तकों के आर्थिक बोझ से निजात दिलाई जाति। परंतु शिक्षा विभाग द्वारा अभिभावकों के हितकर ऐसे निर्णय को तो ठंडे बस्ते में डाल दिया और शिक्षा माफियाओं द्वारा अपनी सुविधा अनुसार निर्णय कराने में एक पक्ष में एकतरफा निर्णय करके यह प्रश्न उत्पन्न कर दिया की शिक्षा माफिया ही शिक्षा विभाग को अपने अनुसार संचालित करा रहे हैं।

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आज अभिभावक संघ उत्तराखंड की कोर कमेटी द्वारा यह निर्णय लिया गया कि इस आपदा काल में अपनी रोजी-रोटी से जूझ रहे अभिभावकों का उत्पीड़न नहीं होने दिया जाएगा। अभिभावक संघ का कहना है कि जब अन्य राज्यों की सरकारों द्वारा (छत्तीसगढ़, दिल्ली, असम आदि) निर्णय लिया जा सकता है तो हमारे उत्तराखंड सरकार को अभिभावकों की इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान देते हुए राज्य में भी 3 माह की फीस माफी का आदेश जारी करना चाहिए। साथ ही संग ने सभी अभिभावकों का आह्वान किया कि किसी भी हल में शिक्षा मंत्री द्वारा कराए गए एक तरफा संशोधन को कतई स्वीकार नहीं करेंगे और पूर्व आदेश दिनांक 25.3.2020 के अनुसार ही शुल्क जमा कराएंगे।

अभिभावक संघ उत्तराखंड का कहना है कि यदि स्कूल प्रबंधनओं को अपने कर्मचारियों के वेतन भुगतान का प्रबंध करना है, तो अभिभावकों का कॉशन मनी के रूप में जमा अग्रिम धन से किया  जाए, जिस पर लाखों रुपए ब्याज इन स्कूलों द्वारा कमाया जाता है। संघ ने कहा कि आयकर अधिनियम की धारा 12 ए के अंतर्गत, जिस कल्याणकारी कार्यों के लिए सरकार से आयकर मैं छूट ली जाती है, उस धन से इस आपदा काल में कर्मचारियों के वेतन की व्यवस्था की जाए।

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संघ ने निर्णय लिया कि यदि मानवीय मूल्यों की इसी प्रकार अवहेलना की गई, तो मजबूरन संघ को ऐसे अप्रिय निर्णय के खिलाफ सड़क पर उतरना पड़ेगा।  

अभिभावक संघ ने यह भी कहा है कि “स्कूल एसोसिएशन का एक और झूठ उजागर हुआ है जो कि विभिन्न समाचार माध्यमों से जानकारी प्राप्त हुई की स्कूल एसोसिएशन के नाम पर जो मुख्यमंत्री राहत कोष में ₹6200000 की राशि दी गई है, वह स्कूलों में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन से काट कर दी गई है, जिसका श्रेय स्कूल एसोसिएशन ने स्वयं लेकर उन कर्मचारियों के साथ धोखाधड़ी की है और जिन कर्मचारियों के वेतन के नाम पर फीस संबंधित पूर्व आदेश को संशोधित कराया। उसमें अभिभावकों के साथ भी धोखाधड़ी हुई है और ऐसे बेचारे कर्मचारियों को दोहरी आर्थिक मार झेलनी पड़ी है। ऐसे शातिर शिक्षा माफियाओं को दो तरफा लाभ प्राप्त हुआ है।”

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