उत्तराखंड की होली बिखेर रही है परम्पराओं के रंग

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पिथौरागढ़ : भारत की सांस्कृतिक विरासत कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विविधता में एकता की छटा बिखेरता है। रंगों का त्यौहार होली भी इस विविधता से बचा नहीं रह पाता। कहने को तो होली रंग-गुलाल का त्योहार है। लेकिन भारत में मथुरा की होली, ब्रज की होली के साथ ही कुमाऊनी होली भी अपनी विविधता से भारतीय संस्कृति की एकता को प्रदर्शित करती हैं।
कुमाऊंनी होली में भारतीय पौराणिक कथाओं के साथ ही श्रृंगार रस से भरे गीत गाये जाते है और यहाँ के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इस विरासत को आगे बढ़ाते आये है। कुमाऊनी होली उत्तराखंड में होली की एक विशेष पहचान है। वैसे तो कुमाऊँ में बसंत पंचमी से ही होली की शुरुआत हो जाती है और होली के गीत यहाँ के वातावरण में गूंजने लगते हैं। तब से ही घर-घर होली की बैठकों का दौर सा चल पड़ता है जो होलिका दहन तक अनवरत चलता रहता है।
सामान्यतया कुमाउनी होली को भी कुमाउनी रामलीला की तरह ही करीब 150-200 वर्ष पुराना बताया जाता है, लेकिन जहां कई विद्वान इसे चंद शासन काल की परंपरा की संवाहक बताते हैं। कुमाऊँ में खड़ी होली की विशेष परम्परा है यहाँ एकादशी से खड़ी होली की शुरुआत होती है। इष्ट देव के प्रांगण में पहली खड़ी होली गायी जाती हैं। जिसके बाद गांव के हर घर में घूमकर होली की टोलिया खड़ी होली का गायन करती है।
अब गांवों से लोग पलायन कर धीरे-धीरे शहरों की ओर पलायन करने लगे है। जिसे देखते हुए पिथौरागढ़ के रामलीला ग्राउंड में पिछले 10 सालों से होली महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिसमे आस पास के गांवो के होली टीम खड़ी होली का गायन करते है। इन दिनों भी यहाँ होली महोत्सव का आयोजनकिया गया है जिसमें अलग अलग होली टीमें अपनी प्रस्तुति दे रही है। पिथौरागढ़ जिले के सभी हिस्सों में इन दिनों खड़ी होली की धूम मची है। आयोजकों का कहना है कि नई पीढ़ी धीरे-धीरे अपनी परम्पराओं को भूल रही है। इसलिए लुप्त होती परम्परा को जीवित रखने के लिए इस तरह के आयोजन किया गया है।

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