ट्रामा सेंटर में सूख रहे कच्छे-बनियान, देखें खास रिर्पोट

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नंद किशोर गर्ग, रानीखेतः सुबह के 11 बजे, अस्पताल में फैला वही पुराना सन्नाटा, एक-आद मरीज, दाहिनी ओर नजर घुमाई तो ट्रामा सेंटर में शटर लगा हुआ है, जिसमें बड़ा ताला लटका है। अब तो ताले पर जंग की परत भी चढ़ने लगी है। जैसे ही नजर घूमी तो, सोचा यह क्या! अस्पताल परिसर में बनी ट्रामा सेन्टर की इमारत अस्पताल के डाक्टर व स्टॉफ का आवास बना नजर आया। हाल यह था कि यहां पर अस्पताल कर्मचारियों के कच्छे-बनियान और कपड़े सूखते नजर आए।

कई सवाल मन को कचोरने लगे। लेकिन अपने ही सवालों के जवाब मैं खुद ही देने लगा। क्योंकि मैं जानता हूं कि अस्पताल की यह स्थिति अब आम सी बात लगने लगी है। तमाम नेताओं और बड़े से बड़े अधिकारी अस्पताल के हाल सुधारने की बातें और आश्वासन तो दे रहे हैं लेकिन स्थितियां सुधरने के बजाए और बिगड़ती नजर आ रही हैं। यदि ऐसा ही हाल रहा तो कुछ समय बाद हमें अस्पताल के हाल और भी बत्तर देखने को मिल सकते हैं।

बेजान से हो रहे इस अस्पताल में मरीज तो आते हैं लेकिन अस्पताल सुविधा होते हुए भी लाचार नजर आता है। जिसके परिणाम स्वरूप अस्पताल अब मात्र रैफर सैंटर नाम से भी जाना जाने लगा है। वर्तमान विधायक करन माहरा के पिता व पूर्व सीएम हरीश रावत के ससुर गोबिन्द सिंह माहरा के नाम का यह चिकित्सिलय है। परेशानी में डालने वाली बात तो यह है कि जिस अस्पताल के उपर वर्तमान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट, वर्तमान विधायक करन मेहरा, तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और बच्ची सिंह रावत (केन्द्रीय राज्यमंत्री भारत सरकार) का वरद हस्त रहा है उसके दिन कब बहुरेगें?

बता दें कि यह जनपद मुख्यालय के बाद क्षेत्र का सबसे बड़ा अस्पताल है। जिस ट्रामा सेंटर की इमारत का उद्घाटन पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा 2009 में किया गया था। उस समय कहा गया था कि यह क्षेत्र का सबसे बड़ा ट्रामा सैंटर होगा। दूरदराज क्षेत्रों के घटना व दुर्घटना में घायलों को राहत दिलाने के लिए इसका निर्माण किया गया। लेकिन उसके बाद से कई सरकारें आईं और गईं लेकिन ट्रार्मा सैंटर के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया। नतीजन यहां पर ना कोई चिकित्सक आया और ना ही कोई उपकरण। आज यहां पर स्थिति यह हो चुकी है कि यह इमारत कुछ लोगों का आवास बनकर रह गई है।

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