स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व सांसद परिपूर्णानंद को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई

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देहरादून: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, टिहरी गढ़वाल के पूर्व सांसद और समाजसेवी परिपूर्णानंद पैन्यूली को रविवार सुबह राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। देहरादून बसंत विहार स्थित उनके आवास पर उन्हें श्रद्धांजलि देने प्रदेश के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, रमेश पोखरियाल निशंक, हरबंश कपूर समेत कई अन्य नेता पहुंचे।

परिपूर्णानंद पैन्यूली  लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। शनिवार सुबह तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। परिपूर्णानंद पैन्यूली का जन्म 19 नवंबर 1924 में टिहरी शहर के निकट छौल गांव में हुआ था। उनके दादा राघवानन्द पैन्यूली टिहरी रियासत के दीवान और पिता कृष्णानंद पैन्यूली इंजीनियर थे। उनकी माता एकादशी देवी के साथ ही पूरा परिवार समाजसेवा और स्वाधीनता आंदोलन के लिए समर्पित रहा। उनकी पत्नी स्व. कुंतीरानी पैन्यूली वेल्हम गर्ल्स में शिक्षिका थीं। उनकी चार बेटियां हैं, जिनमें से एक बेटी इंदिरा अमेरिका में रहती हैं। बेटी राजश्री वेल्हम स्कूल में शिक्षिका हैं और अन्य दो बेटियां विजयश्री और तृप्ति दिल्ली में रहती हैं।

परिपूर्णानंद पैन्यूली जीवट, जुझारू और स्वच्छ छवि के एक स्पष्ट व्यक्ति थे। आजादी की लड़ाई और टिहरी रियासत को आजाद भारत में विलय कराने में उनकी अहम भूमिका रही। विलीनीकरण के एतिहासिक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले तीन प्रमुख प्रतिनिधियों में वह भी एक थे। हिमाचल प्रदेश के रूप में 34 पहाड़ी रियासतों को एक करने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। वह हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ रहे। वे टिहरी के पूर्व नरेश मानवेंद्र शाह को हराकर 1971 में सांसद बने थे।

अपने संसदीय कार्यकाल में उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र के पिछड़ेपन और अनुसूचित जाति-जनजाति की समस्याओं को लेकर पुरजोर ढंग से आवाज उठाई। चकराता और उत्तरकाशी जनजातीय क्षेत्रों के उन्नयन के लिए 1973 में गठित एकीकृत जनजाति विकास समिति को अस्तित्व में लाने का श्रेय भी उन्हें जाता है। वह यूपी-हिल डेवलपमेंट कोरपोरेशन के पहले चेयरमैन रहे। परिपूर्णानंद पैन्यूली कलम के भी धनी रहे। उन्होंने एक दर्जन से ऊपर पुस्तकें लिखी हैं। भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने 1996 में डॉ. अंबेडकर अवॉर्ड से उन्हें नवाजा। निर्धन बच्चों की शिक्षा और वंचितों के विकास के लिए वह अंतिम सांस तक सक्रिय रहे।

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