महात्मा गांधी ने जब उत्तराखंड के इस आन्दोलन की जीत को बताया था स्वतंत्रता आंदोलन की पहली जीत

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रुद्रप्रयाग: भारत की आजादी की लडाई में गढवाल क्षेत्र का बडा योगदान रहा है। स्वाधीनता की लडाई में पहली कामयाबी यहां की कुली बेगार प्रथा को दिया जाता है, जिसके जरिये अंग्रजों को पहली बार भागने पर मजबूर होना पडा था। शामन्तशाही व ब्रिटिश काल की एक जघन्य प्रथा जिसे कि कुली बेगार या वरदायश प्रथा के नाम से जाना जाता था और पूरा कुमांयू व गढवाल इस गुलामी व दासता की प्रथा से त्रस्त था। जनता के आंदोलन के आगे ब्रिटिश सरकार को इस प्रथा का अंत करना पडा और स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तार भेजकर इस जीत को स्वतंत्रता के आंदोलन की पहली जीत बताया था। यह ऐतिहासिक स्थल मौजूद है तत्कालीन चमोली जनपद के ककोडाखाल, जो कि अब रुद्रप्रयाग जनपद का हिस्सा है। यहां आज भी बेगार प्रथा से जुडी निशानियां मौजूद हैं जिनका जिक्र इतिहास के पन्नों में है।

रुद्रप्रयाग जनपद में विकासखण्ड अगस्त्यमुनि के अंर्तगत दूरस्त क्षेत्र में मौजूद है ककोडाखाल गांव। जो कि भारत की आजादी में एक बडी क्रान्ति का गवाह है। शामन्तशाही और फिर अंगे्रजी शासनकाल में एक बडी कुप्रथा गढवाल व कुमांयू में प्रचलित थी जिसे कुली बेगार या बरदायश प्रथा के नाम से जाना जाता था। भले ही यह कानून नहीं था मगर एक ऐसी कुप्रथा थी कि जिससे पूरा जनमानस परेशान था। इसमें कोई इज्जत, मान सम्मान, परेशानी व विपत्ति नहीं थी सिर्फ गुलामी व दासता का जीवन जीना था और हुकमरानों के आदेशों का हर हाल में पालन करना था। इस कुप्रथा से त्रस्त होकर कुमांयू क्षेत्र में बद्रीदत्त पाण्डे व गढवाल क्षेत्र में अनुशूया प्रसाद बहुगुणा ने मोर्चा संभाला और जनता को एक जुट किया। तत्कालीन समय में गढवाल भी कुमांयू कमिश्नरी का हिस्सा था और 13 जनवरी 1921 को तत्कालीन कुमांयू डिप्टी कमिश्नर पी मेशन को अपने सिपेसलाहकारों व परिवारजनों के साथ कर्णप्रयाग में मकर संक्रान्ति के मेले के लिए पहुंचना था। और 12 जनवरी 1921 को पी मेशन अपने लाव लक्शर के साथ पैदल कोठगी से ककोडाखाल पहुंचे। यहां पहले से अनुशूया प्रसाद बहुगाणा के साथ ही क्षेत्र के 72 गांवों के लोग इस प्रथा के विरोध के लिए पहुंच गये और यहां काफी हो हल्ला भी हुआ। जिस पर पी मेशन ने गोली चलाने के आदेश दे दिये और हवा में दो राउॅण्ड फायरिंग भी हुई मगर भारी जनाक्रोश को देखते हुए पी मेशन को गोली चलाने का आदेश वापस लेना पडा और उग्र भीड ने पी मेशन के सभी टेन्टों व खाद्यान सामाग्री को आग के हवाले कर दिया। जिसके बाद पी मेशन ककोडाखाल में परिवार सहित बंधक बनकर रह गये रात्रि के करीब 12 बजे जब सारे लोग सो रहे थे तो पी मेशन अपने परिवारजनों के साथ पैदल ही यहां से भाग गये। बाद में आंदोलन के नायक रहे अनुशूया प्रसाद बहुगुणा को गढ केशरी की उपाधि दी गयी। और राष्ट्पिता महात्मा गांधी ने तार भेजकर इसे स्वतंत्रता आंदोलन की पहली जीत बताया।

कुली बेगार प्रथा के अंर्तगत यहां लागों को दासता भरा जीवन जीना पडता था जब भी राजा या फिर अंगे्रज अधिकारी यहां दौरे पर आते थे तो उनके रहने खाने व पालकी ढोने की व्यवस्था यहां के लोगों को करनी पडती थी साथ ही अनाज के साथ ही कई बहुमूल्य वस्तुएं भी वरदायश के तौर पर भेंट करनी पडती थी। इसमें कोई भी रियायत नहीं मिलती थी अगर कहीं चूक हो गयी तो जघन्य दण्ड भी दिये जाते थे। सन 1914 में इस प्रथा का विरोध होना शुरु हुआ और 1921 में जनता इस कुप्रथा के खिलाफ घरबार छोडकर आंदोलन में कूद पडी थी। इस आंदोलन के दौरान करीब 37 लोगों को जेल में डाला गया और कई लोगों की इस दौरान जेल में ही मृत्यु भी हुई।

क्षेत्र के 72 गांवों के ग्रामीणों ने इस कुप्रथा की खुली खिलाफत की और दासता की जिन्दगी से मुक्ति पाने के लिए वृहद आंदोलन किया जिसका नतीजा यह हुआ कि अंगे्रज तो रातो रात यहां से भागे और प्रथा भी समाप्त हुई मगर इन 72 गांवों को 10 नम्बरी घोषित कर दिया गया और विकास के नाम पर मिलने वाले धन को बन्द कर दिया गया। मालगुजारों की मालगुजारी छीनी गयी तो पदानों की पदानचारी समाप्त कर दी गयी।

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