जनता पलकों पर भी बिठाती है और जमीन भी दिखाती है

Please Share

प्रदीप रावत (रवांल्टा)
उत्तरा पंत बहुगुणा का पूरा एपिसोड हुआ। जैसे-जैसे मामला धीमा पड़ने लगा। उससे यह लगने लगा था कि अब मामला कुछ शांत हो गया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत धुमाकोट में हुए दर्दनाक हादसे के बाद वहां पहुंचे। वहां एक और महिला ने उनकी गाड़ी पर पत्थर बरसाने की बात कही। वह भी सिस्टम और सरकार के रवैसे से दुखी थी। उन्होंने हादसे में अपने परिवार के आठ लोगों को खो दिया था। सीएम उत्तरा पंत मामले के बाद से खुद को सार्वजनिक कार्यक्रमों से बचाते नजर आए। हालांकि कुछ बड़े कार्यक्रमों में जरूर हिस्सा लिया। एक के बाद एक जो कड़ियां जुड़ती जा रही हैं। उससे एक बात तो तय है कि सीएम टीएसआर पार्टी के नेताओं से दूरी बनाकर चल रहे हैं। उनको पार्टी नेताओं को साथ भी नहीं मिल पा रहा है और ना कोई उनके बचाव में मुन्ना सिंह चैहान को छोड़कर सामने आ रहा है। ऐसा लगता है कि वे अपने आसपास के घेरे में कैद होकर रह गए हैं। उससे बाहर नहीं आना चाहते। सरकार के अब तक के कार्यकाल में कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें सरकार और संगठन के बीच टकराव साफ नजर आया। सरकार मीडिया पर भी भरोसा नहीं कर पा रही। सरकार मीडिया पर नियंत्रण चाहती है। वैसा हो नहीं पाया तो मीडिया को कई सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर कर दिया गया। कवरेज पर बैन लगाया गया। हर मामले में संगठन की राय सीएम से अलग रही। बावजूद इसके मीडिया पर एक और बैन की तैयारी चल रही है। सीएम या तो इन बातों को समझ नहीं पा रहे हैं या फिर समझना ही नहीं चाहते। लगातार घटते घटनाक्रम सीएम को विलेन बनाते जा रहे हैं। यह सीएम को ही तय करना है कि उनको जनता का मुख्यमंत्री बनना है या कुछ और…।
लोग यह समझ रहे थे कि सीएम को कुछ बातें चुभी हैं। वो हर्ट हुए होंगे। खुद को थोड़ा शांत रखने के लिए उन्होंने अपने रोज के कार्यक्रमों से अल्प अवकाश ले लिया, लेकिन जिस तरह से अब उन्होंने पूर्व सीएम हरीश रावत की तर्ज पर केवल अपनी पार्टी के विधायकों की समीक्षा का फरमान जारी किया है। उससे वे एक बार फिर से निशाने पर आ गए हैं। यह बात खटक रही है कि, जिन मामलों पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और पूरी पार्टी ने हरदा के फैसले का विरोध किया था। उन्हीं मामलों को सीएम क्यों उसी पुराने ढर्रे पर करना चाहते हैं। विधानसभाओं में विकास कार्यों की समीक्षा के लिए जो चार्ट जारी किया गया। उसमें दो निर्दलीय और 11 कांग्रेस विधायकों की विधानसभाओं की समीक्षा को शामिल नहीं किया गया है। इससे सीएम टीएसआर क्या साबित करना चाहते हैं? यह समझ से परे है।
यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले सीएम ने चारधाम में हेली सेवा को लेकर भी ऐसा ही निर्णय लिया। उन्होंने वही काम किया, जो पूर्व सीएम हरीश रावत ने किया था। मसलन कुछ कंपनियों को उड़ान का मौका दे दिया। कुछ को टेंडर में शामिल ही नहीं होने दिया। उस समय भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने हरीश रावत की नीतियों का जमकर विरोध भी किया था। भाजपा ने सरकार में आते ही पूर्व के टेंडर को निरस्त भी कर दिया था, लेकिन बाद में फिर से उसी तर्ज पर हवाई सेवा के टेंडर जारी कर दिए।
अब मीडिया की बात पर आते हैं। देश में उत्तराखंड की तमाम हस्तियों की मौजूदगी में रैबार कार्यक्रम हुआ। उसमें मीडिया को पूरी तरह बैन कर दिया गया था। कार्यक्रम में शामिल होने गए मीडिया कर्मियों के साथ अभद्रता तक की गई। मीडिया से सरकार क्या छुपाना चाहती थी। ये बात ना तब किसी के समझ में आई और ना अब तक आ पाई है।
मीडिया से जुड़ा दूसरा वाकया, बजट पर राय कार्यक्रम के दौरान दून यूनिवर्सिटी में सामने आया। दरअसल, हुआ यह कि आपका बजट, आपकी राय कार्यक्रम को कवरेज करने पहुंचे मीडिया कर्मियों को सीएम के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट ने यह कहकर भगा दिया कि कवरेज पंहुचा दी जाएगी। कुछ रिपोर्टरों के साथ फिर से अभद्रता भी हुई। मालिकों से बात करने की धौंस दिखाकर डराया गया।
सचिवालय में भी मीडिया पर खबरें लीक होने के डर से सरकार ने रोक लगा दी थी। वहां बाकायदा एक मीडिया सेंटर खोला गया, जिसमें एक सचिव को मीडिया से मुखातिब होने के लिए तैनात कर दिया गया, जो एकदम खराब निर्णय था। हालांकि बाद में मीडिया संस्थानों और विशेषज्ञों की राय के बाद सरकार को इसमें ढील देनी पड़ी।
अब उत्तरा पंत मामले के बाद सरकार जनता दरवार में भी मीडिया पर बैन लगाने की तैयारी में है। कई समाचार पत्रों में सीएम के मीडिया काॅर्डिनेटर दर्शन सिंह रावत के हवाले से खबरें प्रकाशित हुई हैं। टाइम्स आॅफ इंडिया ने लिखा है कि जनता दरवार में सरकारी कर्मचारियों के साथ ही मीडिया कर्मी जनता दरवार में नहीं आ सकेंगे। इतना ही नहीं जनता दरवार में मोबाइल ले जाना भी प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। यह चिंता का विषय है कि इस तरह के प्रतिबंध लगाकर आखिर सीएम क्या साबित करना चाहते हैं?
एक और बात जो सुनने में आ रही है। वो भी पत्रकारों के लिए किसी प्रतिबंध से कम साबित नहीं होने वाली। हालांकि अभी इसका आॅफीशियल एलान नहीं हुआ है, लेकिन जो सुनने में आया है। उसमें यह बातें सामने आ रही हैं कि मुख्यमंत्री काॅनक्लेव नाम से पूरे प्रदेश में कार्यक्रम आयोजित कराए जाएंगे, जिनमें लोगों को सरकार की उपलब्धियां गिनाई जाएंगी। यह अलग बात है कि सरकार के पास बताने के लिए कोई उपलब्धि है या नहीं, लेकिन एक बात तय है कि इन कार्यक्रमों में मीडिया को नहीं जाने दिया जाएगा। जिस कंपनी को टेंडर दिया जाएगा। वहीं कंपनी रिर्पोट तैयार कर मीडिया को जारी करेगी।
उत्तरा पंत बहुगुणा मामले से जुड़ा एक और मसला है। उत्तरा पंत से जब यह पूछा गया था कि क्या वे सीएम से माफी मांगेंगी, तब उन्होंने बयान दिया था कि गलती सीएम ने की है। पहले उनको माफी मांगनी चाहिए। फिर वे भी मांग लेंगी, लेकिन हुआ यह कि आईटी सेल ने पूरा बयान न चलाकर इसमें कांट-छांट कर वायरल कर दिया गया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है।
सोचने की बात यह है कि जीरो आॅलरेंस की बात करने वाले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को मीडिया से क्या डर है। उनको डर दिखाया जा रहा है या फिर वो खुद ही डरे हुए हैं। चाहे कुछ भी हो। उनको यह समझना चाहिए कि जनता जिसे पलकों पर बिठाती है। उसे जमीन दिखाने में ज्यादा देरी नहीं करती। मीडिया से कुछ भी छुपा लें, लेकिन सोशल मीडिया से आप कुछ नहीं छुपा पाएंगे। एक बात और जिस तरह से उत्तरा पंत मामले में आप अकेले पड़े थे। आने वाले दिनों में भी आपको उस तरह की स्थितियों से दो-चार होना पड़ सकता है। निर्णय आपको करना है कि आप जनता के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं या फिर तुगलकी फरमान सुनाने वाले बादशाह।

You May Also Like