बजट सत्र में गैरसैंण को लेकर महाभारत,सत्र,सियासत और जनभावनाओं का मुद्दा बना गैरसैंण,क्या स्थाई राजधानी का ख्वाब गैरसैंण का रहेगा अधूरा

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गैरसैंण: गैरसैंण में त्रिवेंद्र रावत सरकार ने बजट सत्र कर वाहवाही लूटने की कोशिश तो शुरू कर दी है, लेकिन गैरसैंण में बजट सत्र की शुरूवात की हंगामें के साथ शुरू हुई, विपक्ष ने सत्र की शुरूवात में ही स्थाई राजधानी के नाम पर सरकार को घेरने की कोशिश की है, यानी मतलब साफ है कि पूरे बजट सत्र में विपक्ष अन्य मुददों के साथ गैरसैंण के रूख को लेकर सरकार पर हमला बोलेगा और पूरे सत्र में गैरसैंण को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सवालों और जवाबों के बीच हंगामें से महाभारत छिड़ी रहेगी।
उत्तराखंड मात्र एक राज्य, जो उलझा राजधानी के फेर में
उत्तराखंड देश का एक मात्र ऐसा राज्य है जो राजधानी के फेर में फंसा हुआ है। देश के 29 राज्य में उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है, जिसकी राजधानी राज्य गठन के 18 वर्षों बाद भी तय नहीं हुई और यही वजह है कि जब-जब गैरसैंण में किसी भी सरकारी कार्यक्रम का अयोजन होता है, तो स्थाई राजधानी के रूप में गैरसैंण को याद किया जाता है और राजनीति इसी को लेकर गर्म रहती है। उत्तर प्रदेश से अलग हुए उत्तराखंड राज्य को बनाने का श्रेय जरूर भारतीय जनता पार्टी लेती है क्योंकि, उत्तराखंड राज्य का गठन तब हुआ, जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, लेकिन राजधानी को उलझाने का श्रेय आज तक कोई नहीं ले पाया।
 
जनभावनाओं का केंद्र बनकर रह गया है गैरसैंण
उत्तराखंड राज्य का निर्माण यूं तो आंदोलन के गर्भ से हुआ है, जिसके लिए राज्य आंदोलनकारियों के साथ उत्तराखंड के हर मानस ने उस समय उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठाई,लेकिन राज्य दिलाने की लडाई में जिन राज्य आंदोलनकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका थी, उन्होने गैरसैंण को ही स्थाई राजधानी के रूप में देखा और यहां तक कि  गैरसैंण को सपनों की राजधानी के रूप में स्थाई राजधानी की आधारशिला भी रख दी थी, लेकिन दुर्भाग्य इस बात को लेकर है कि आज तक कोई भी सरकार गैरसैंण को स्थाई राजधानी के रूप में गैरसैंण को स्वीकर नहीं कर पाई। जिससे आज तक राज्य आंदोनकारियों का सपना गैरसैंण को स्थाई राजधानी के रूप में देखने को अधूरा बचा हुआ है।
विपक्ष में सवाल, लेकिन सत्ता में रहते मौन हो जाते है सत्ताधारी दल
गैरसैंण को स्थाई राजधानी न बन पाने के पिछे की सबसे बडी वजह ये है कि जब उत्तराखंड में भाजपा या कांग्रेस जिनकी सरकार यहां बारी-बारी से अब तक आती रही है, वह जब सत्ता पक्ष में होती है तो गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने के नाम पर उन्हे मानों सांप सूंघ जाता है, लेकिन जैसे ही वही दल विपक्ष में चले जाता है गैरसैंण पर सत्ताधारी की स्प्ष्ट  राय राजधानी को लेकर ऐसे पूछते हैं, जैसे यदि वह सत्ता में होते तो गैरसैंण को तुरंत स्थाई राजधानी घोषित कर देते। कुल मिलाकर गैरसैंण के मसले पर उत्तराखंड में सरकारे बदल जाती है लेकिन सवाल और जवाब सत्ता बदलने के साथ मानों सत्ता पक्ष और विपक्ष अदला-बदली कर देते है। जब हरीश सरकार के द्वारा गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन सत्र कराया गया तो वहीं बीजेपी जो आज सत्ता में है, सरकार से गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की मांग करती थी, लेकिन आज बीजेपी सत्ता में है और गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने के मसले पर मौन है, तो वहीं कांग्रेस जो पूर्व में सत्ता में रहते हुए इस सवाल पर मौन रहती थी वह गैरसैंण में बजट सत्र में जोर – जोर से चिल्ला रही है कि सरकार में दम है तो डबल इंजन और तीन-तिहाई से ज्यादा बहुमत की सरकार गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित क्यों नहीं करती।
विधान सभा अध्यक्ष की राय सरकार से जुदा
गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने के लिए वर्तमान की बीजेपी और पूर्व की कांग्रेस सरकार में विधान सभा अध्यक्ष की राय सरकार से जुदा रही है और यदि एक होती तो संवैधानिक पद संभाले विधान सभा अध्यक्ष की मांग पर आज गैरसैंण स्थाई राजधानी के रूप में जाना जाता,कांग्रेस सरकार में पूर्व विधान सभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल सरकार से यही मांग करते रहे कि प्रदेश सरकार को गैरसैंण स्थाई राजधानी घोषित कर देना चाहिए। ठीक उसी तरह की मांग विधान सभा अध्यक्ष प्रेमचंद अपनी सरकार से कर रहे हैं,ऐसे में सवाल ये उठाता है कि क्या पूरी सत्ताधारी पार्टी में केवल विधान सभा अध्यक्ष को गैरसैंण स्थाई राजधानी के रूप में भाता है, इसलिए सरकारें कोई निर्णय नहीं ले पाती है।
गैरसैंण को लेकर सुलग रहा है आंदोलन
गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने को लेकर इन दिनों उत्तराखंड में एक आंदोलन छिड तो गया है, लेकिन सवाल ये उठा रहा है कि क्या इस आंदोलन में वह दम है, जो इस आंदोलन को चला रहे हैं, उनमें वह हिम्मत है जो इस आंदोलन को मुकाम पर ले जाकर गैरसैंण को स्थाई राजधानी के रूप में लेकर रहेंगे क्योंकि, इस आंदोलन में वह भी आंदोलनकारी जुडे हुए हैं, जिन्होंने राज्य लडने की लडाई लडी हुई है।
अभी नहीं तो कभी नहीं
अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर ये आंदोलन गति पकड रहा है। वह इस उम्मीद के साथ ही बीजेपी की प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार है और केेंद्र में भी बीजेपी की सरकार है अगर आंदोलन ने जोर पकडा और घर-घर आंदोलन पहुंचा तो बीजेपी की डबल की सरकार पर स्थाई राजधानी बनाने के लिए दबाव बनाया जा सकता है।
उम्मीदों का सत्र
बहरहाल गैरसैंण में जारी बजट सत्र पर पूरे उत्तराखंड की निगाहें लगी हुई है, त्रिवेंद्र रावत की सरकार गैरसैंण को किस रूप में देखती है और जब पहली बार कोई सरकार गैरसैंण में बजट सत्र करा रही है तो कोई सौगात गैरसैंण को देती है,चाहे वह ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में ही क्यों न हो। लेकिन गैरसैंण को लेकर एक ही सवाल सबके मन में उठता रहता है कि क्या गैरसैंण कभी स्थाई राजधानी बन भी पाएगी।

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