मज़बूरी या फिर मगरूरी में किया परिषद को भंग-हेमंत पांडेय

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देहरादून : राज्य में कलाकारों को फ़िल्मी जगत से जोड़ने और कलाकारों को एक अलग पहचान देने के लिए फिल्म परिषद बोर्ड का गठन किया था। लेकिन किसे पता था कि कलाकारों के सपने सरकार के फैसले की भेंट चढ़ जायेंगे। प्रदेश में फिल्मों के निर्माण को बढ़ावा देने और निर्माताओं-निर्देशकों को अधिक से अधिक सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2015 में उत्तराखण्ड फिल्म विकास परिषद का गठन किया गया था। परिषद में सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अध्यक्ष थे। इसमें गैर सरकारी दो उपाध्यक्ष व 15 सदस्यों को नामित किये गए थे। इन दो उपाध्यक्षों में से बॉलीवुड कलाकार हेमंत पाण्डेय को वर्ष 2016 में पूर्व की हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में उपाध्यक्ष बनाया गया था, जबकि इसके बाद जय श्रीकृष्ण नौटियाल को जुलाई 2017 में उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

परिषद का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है। लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सूचना सचिव डॉ. पंकज पाण्डेय की ओर से शासनादेश जारी कर परिषद को भंग कर दिया गया। इस सम्बंध में हैलो उत्तराखंड न्यूज़ से बात करते हुए अभिनेता हेमंत पांडेय ने कहा कि सरकार के इस फैसले से वह पूरी तरह से हैरान है। पांडेय ने सीएम रावत का धन्यवाद करते हुए कहा कि प्रदेश में फिल्मों की शूटिंग के लिए शुल्क न लेना और गढ़वाल और कुमाऊँ मंडल के भवनों में कलाकारों के ठहरने में 50 प्रतिशत की छूट वाले फैसले का स्वागत करता हूँ। उन्होंने कहा कि अंतिम बैठक में सीएम रावत ने प्रदेश में 17 फरवरी को होने वाले फिल्म फेस्टिवल को हरी झंडी दिखाई थी। जिसमे राज्य भर के तमाम निर्माताओं-निर्देशकों और कलाकारों को सम्मानित किया जाना था। पांडेय ने कहा कि सरकार ने इस फैसले से उन सभी लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। पांडेय ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा किसी कार्यक्रम को हरी झंडी दिखाने के बाद इस तरह से रद्द करने वाले फैसले ने राजनीति से विश्वास खत्म कर दिया है। इतना ही नहीं पांडेय ने हैरानी जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री बोर्ड की एक भी मीटिंग में उपस्थित नहीं हुए। अचानक इस तरह बोर्ड को भंग करने वाले फैसले पर पांडेय ने कहा कि सरकार ने यह फैसला या तो किसी मज़बूरी में लिया है या फिर मगरूरी में। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार अगर एक बार फिर बोर्ड का गठन करती है तो उस में वह अपनी भागीदारी जरूर देंगे। लेकिन इस मुद्दे पर वह सीएम रावत से कोई भी बात नहीं करना चाहते।

बहरहाल सरकार के इस फैसले के पीछे का राज तो सरकार ही जाने लेकिन परिषद को इस तरह भंग करने से कलाकारों की भावनाओं को ठेस तो अवश्य ही लगी होगी। 

उनका यह भी कहना था कि  उनके रहते फ़िल्म परिषद को 30 लाख का राजस्व प्राप्त हुआ है और साथ ही साथ बॉलीवुड व दूसरे निर्माताओं ने भी उत्तराखंड में शूटिंग में भी तेजी लाई है। 

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