हर कार्रवाई के बाद सवालों के घरे में क्यों नजर आ रही हैं बाल आयोग अध्यक्ष

Please Share

देहरादून: इन दिनों बाल संरक्षण आयोग और आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी काफी चर्चाओं में हैं। पिछले कुछ दिनों से जीआरडी में विवाद और राष्ट्रीय दृष्टि विकलांग संस्थान देहरादून (एनआईवीएच) में योन शोषण के मामले सामने आने के बाद बाल आयोग ने दोनों ही ममालों में जांच की। मामले की जांच के बाद आयोग की अध्यक्ष पर भी बच्चों ने सवाल खड़े कर दिए। अब बाल आयोग की अध्यक्ष के साथ एक और विवाद सामने आया है। उन्होंने शिमला बाईपास रोड हरिओम और शिवओम आश्रम में छापेमारी की। छापेमारी के दौरान अव्यवस्थाएं मिलने के बाद बाल आयोग अध्यक्ष ने डीएम देहरादून के दोनों आश्रमों की एनओसी निरस्त करने के निर्देश दिए, लेकिन हरिओम आश्रम के संचालक ने बाल आयोग अध्यक्ष पर उत्पीड़न का आरोप लगाकर उनके खिलाफ डीएम से शिकायत की है।

हरिओम आश्रम के संचालक अनूपानंद का अरोप है कि बाल आयोग की अध्यक्ष एसडीएम और 10-12 पुलिस कर्मियों के साथ भीतर घुस आई और तलाशी लेने लगी। उनका आरोप है कि जबरन आश्रम में तलाशी के दौरान अनाथ बालिकाओं के साथ अभद्रता भी की गई। इस पूरे मामले में बाल आयोग अध्यक्ष ऊषा नेगी का कहना है कि जब कोई अच्छे काम करने लगता है, तो इस तरह के आरोप तो लगते रहेंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

जीआरडी और एनआईवीएच मामले में उन्होंने कहा कि संस्थान ने जबरन बच्चों को बाल आयोग के आश्रम में लाया। आयोग में हर मामले की सुनवाई का समय तय होता है। सुनवाई के बीच में किसी को रोककर बच्चों की बात को नहीं सुना जा सकता था। उनको पांच बजे तक रुकना पड़ा। उन्होंने कहा कि इसके लिए तो स्कूल ही जिम्मेदार है बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान किया गया। साथ ही कहा कि अगर समस्या थी, तो आयोग से कह सकते थे। आयोग उनके पास जाता।

राजनीति पृष्ठभूमि से हैं अध्यक्ष
बाल आयोग अध्यक्ष का पद गैर राजनीतिक है। लेकिन वर्तमान अध्यक्ष सक्रिय राजनीति में रही हैं। सीडब्यूसी की अध्यक्ष ने कहा था कि उनका बैकग्राउंड रानीतिक है। अगर बाल बायोग अध्यक्ष पद पर नियुक्ति की बात करतें तो उसके लिए पहले से ही मानक तय हैं। केंद्र और राज्य सरकार के लिए एक जैसे नियम हैं। नियमों के मुताबिक कोई भी राजनीति बैकग्राउंड वालों को बाल आयोग का अध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता। बाल आयोग के लिए निर्धारित मानकों के अनुसार बाल आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति वभागीय मंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति के जरिए कराया जाता है। यह भी आरोप हैं कि उनकी नियुक्ति के लिए जरूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इस पर ऊषा नेगी का कहना है कि आयोग में काम होना चाहिए। यहां राजनीति करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। यह बेवजह मामले को विवादित बनाने के लिए किया जा रहा है।

You May Also Like