सरकार ने दी पुल गिराने की अनुमति…!

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देहरादून: सरकार पिछले कुछ समय से ऐसे निर्णय ले रही है, जिससे बाद में सरकार को ही नुकसान उठाना पड़ रहा है। हाल ही में मेडीकल फीस और आबकारी नीति में निर्णय लेने के बाद फिर से बदलाव कर रोलबैक करने को लेकर सरकारी की काफी किरकिरी हुई थी। अब सरकार ने एक ऐसा ही निर्णय लिया है। दरअसल, प्रदेश में नदियों 2016 में हाईकोर्ट के आदेश के बाद पुलों के नीचे खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया दिया था। लेकिन, सरकार ने पूर्व में जारी शासनादेश को निरस्त करते हुए पुलों के नीचे भी खनन की खुली छूट दे दी है। इससे पुलों को भारी नुकसान हो सकता है। बावजूद इसके सरकार ने खनन की खुली छूट की अनुमति दी है।

प्रदेश में कई ऐसे पुल हैं, जिनको पहले ही अवैध खनन से खतरा है। अब सरकार ने पुलों के नीचे खनन को वैध करार दे दिया है। इससे पहले से ही खनन के चलते खतरे की जद में आए पुलों पर खतरा और गहरा गया है। पुलों के नीचे खनन को पुलों को खतरे के कारण ही पूर्ण प्रतिबंधित किया गया था। हालांकि सरकार ने खनन की अनुमति देने के साथ कुछ शर्तें भी रखी हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि प्रदेश में अवैध खनन रोकने में अब तक नाकाम रही सरकार पुलों को खनन से होने वाले नुकसान से कैसे बचा पाएगी? सरकार ने जो नियम और शर्तें रखी हैं, क्या उनको लागूं करा पाएगी?

राजस्व के लालच में सरकार ने पुलों के नीचे खनन की अनुमति तो दे दी, लेकिन इससे राजस्व से ज्यादा पुलों की सुरक्षा को खतरा हो गया। खनन माफिया खनन करते हुए यह नहीं देखते कि इससे नुकसान हो रहा है या नहीं। वह उपखनीज के लिए नदी में जेसीबी और पोकलैंड जैसी मशीनें उतारने से भी नहीं कतराते। सवाल यह भी है कि जब सरकार एक किलोमीटर के दायरे में खनन पर रोक के बावजूद अवैध खनन नहीं रोक पाई, तो 300 और 500 मीटर के दायरे में अवैध खनन कैसे रोक पाएगी। प्रदेश में ऋषिकेश की चंद्रभागा नदी पर बने पुल, कोटद्वार में खोह, मानल और सुखरों नदियों, कीर्तीनगर पुल, डोईवाला, विकासनगर, हल्द्वानी, ऊधमसिंहनगर समेत कई अन्य जिलों और जगहों पर बने पुलों को अवैध खनन से बड़ा खतरा है। पिछले साल अवैध खनन के कारण कोटद्वार और नजीबाबाद को जोड़ने वाले रेलवे पुल भी ध्वस्त हो गया था। ऐसे में इन पुलों को बचाने के उपाय करने के बजाय सरकार ने खनन की ही खुली छूट दे दी।

कोर्ट ने लगाई थी रोक
नैनीताल हाईकोर्ट ने 2016 में प्रदेश में पुलों के दोनों किनारों पर एक किलोमीटर तक खनन पर रोक लगा दी थी। जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया था।

पहले के नियम
2013 में यह तय किया गया था कि किसी भी पुल के दोनों ओर एक किलोमीटर की दूरी तक खनन कार्य नहीं किया जाएगा। बावजूद इसके पुलों के नीचे धड़ले से खनन कार्य हो रहा है। यह रोक प्रदेशभर के पुलों के आसपास हुए खनन की जांच के बाद लिया गया था।

नए नियम
7 अप्रैल को प्रमुख सचिव ओम प्रकाशी की ओर से जारी नए आदेश में पुलों के दोनों और खनन के लिए अलग-अलग शर्तें हैं। इसमें कहा गया है कि जिन पुलों की फाउंडेशन बेड लेवल से ऊपर होगी, उनके पांच सौ मीटर की दूरी तक खनन नहीं किया जाएगा। जबकि जिन पुलों की फाउंडेशन बेड लेवल से नीचे होगी। उनके 300 मीटर की दूरी तक खनन किया जा सकेगा।

                                                                                                                                                                                                           –प्रदीप रावत (रंवाल्टा) 

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