धूमधाम से मनाया गया दुबड़ी का त्यौहार, ढोल-दमाऊ की थाप पर थिरके लोग

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उत्तराखंड: जौनपुर विकासखंड में खुशहाली और समृद्धि के प्रतीक ‘ दुबड़ी ‘ त्योहार की धूम धाम रही पारम्परिक वाध्ययंत्र ढोल , दमाऊ की थाप पर ग्रामीण लोग खूब थिरके। यह भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता हैं। दुबड़ी त्यौहार जौनपुर का पौराणिक त्यौहार है। इसी त्यौहार के बाद अन्य सभी त्योहारों का आगमन होता है। ठक्कर कुदाऊ के सामजिक कार्यकर्ता संजय गुसाईं ने बताया की यमुनाघाटी और जौनपुर क्षेत्र अपनी अनूठी संस्कृति एवं रीतिरिवाजों के लिए पुरे प्रदेश में जाना जाता है। दुबड़ी के त्यौहार को मनाने की तैयारी स्वछता अभियान से शुरू होती है। दुबड़ी से एक दिन पूर्व गाँव की सभी महिलायें अपने घरों आंगनो ,पंचायती चौक एवं रास्तों की सामूहिक रूप से साफ़ सफाई करती है।     अगले दिन दोपहर के समय गाँव के पुरुष एवं बच्चे गाँव के खेतों में जो भी फसलें होती है उन्हें उखाड़कर लाते है। और उस सभी प्रकार की फसलों को गाँव के पंचायती चौक में इक्क्ठा करके एक बड़ा गट्ठर बनाते है।

गाँव के बुजुर्गों के निर्देशन में उन फसलों के गट्ठर को एक मीटर गहरे खड्ढे में गाढ़ा  जाता है  इसी को स्थानीय भाषा में दुबड़ी कहा जाता है।

संध्या के समय गाँव की सभी महिलाएं पंचायती चौक में पहुंचकर दुबड़ी की पूजा अर्चना करती है। और अपने गांव की खुशहाली एवं समृद्धि के लिए अपने भूमि देवता, कुल व इष्ट  देवता की आराधना करती है। इसी बीच गाँव में आये मेहमानो का आदर- सत्कार का कार्यक्रम भी चलता रहता है !!!!!

दुबड़ी के त्यौहार के दिन स्थानीय अनाज झंगोरा व् कोणी के आटे को पीसकर उसे पकाकर उसकी छोटी छोटी गोलियां बनाई जाती है ,  यह दुबड़ी त्यौहार का विशेष पकवान होता है जिसे खांड ( चीनी का बुरा ) और शुद्ध घी के साथ प्रसाद के रूप में खाया जाता है। सभी लोग एक दूसरे को ककड़ी और मक्की भेंट देते है।

दुबड़ी पूजन के समय ही गाँव के पुरुष और मेहमान पारम्परिक वाद्य यंत्र ढोल और दमाऊ की ताप पर रासो एवं तांदी नृत्य करते है और ढोल की थाप से पूजा कर रही महिलाओं को मुख्य दुबड़ी से दूर हो जाने का संकेत दिया जाता है ततपश्चात जैसे ही सभी महिलाये दुबड़ी से दूर होती है सभी पुरुष सामूहिक रुप से दुबड़ी को उखाड़कर उनमे लगी फसलों को हवा में उछालकर

अगले वर्ष भी अच्छी फसल की कामना के वास्ते उन फसलों को अपने घरो के छत पर रख देते है और पूरी रात नाचगानो के साथ अगले दिन सुबह मेहमानो का पौणाई ( सत्कार ) किया जाता है

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