मुख्यमंत्री से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री तक सब फेल!

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देहरादून: निकाय चुनाव में भले ही भाजपा निगमों पर बढ़त बनाने से जीत का जश्न मना रही हो, लेकिन इन चुनावों में भाजपा के बड़े चेहरे फेल साबित हुए हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट, पूर्व सीएम और सांसद रमेश पोखरियाल निशंक और मदन कौशिक हो या फिर हरक सिंह, अपनी विधानसभा क्षेत्रों में अपनी साख तक नहीं बचा पाए।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह अपनी विधानसभा सीट डोईवाला नही बचा सके। मुख्यमंत्री ने डोईवाला सीट को जीतने के लिए पूरी ताकज झोंक दी थी। जनसभाओं के अलावा उन्होंने चुनाव में जनसंपर्क तक किया। परिणाम आने के बाद उनकी बौखलाहट सीधे तौर पर तो सामने नहीं आई, लेकिन परिणाम आने के बाद जिस तरह से मतदान स्थल पर तोड़-फोड़ की गई। उससे एक बात तो साफ है कि सीएम और उनके समर्थकों को उनकी हार पच नहीं रही थी। कांग्रेस ने सीएम को उनके ही घर में हरा दिया। यहां पूर्व सीएम हरीश रावत ने पार्टी प्रत्याशी के लिए खूब प्रचार किया था।
भाजपा अजय भट्ट प्रदेश अध्यक्ष रानीखेत सीट नहीं बचा पाए। अजय भट्ट प्रदेश की 90 फीसदी सीटों को जीतने का दावा कर रहे थे, लेकिन वो अपने गृहनगर की ही सीट नहीं बचा पाए। कुमाऊं में अजय भट्ट की प्रभाव वाली सीटों को नहीं जीत पाए।
सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक अपने गृह क्षेत्र में पूरी तरह फेल साबित हुए। हरिद्वार नगर निगम में भी कांग्रेस ने जीत हासिल की। इस सीट पर पूर्व सीएम और सांसद रमेश पोखरियाल निशंक ने भी खूब जोर लगाया, लेकिन वे भी भाजपा को जीत नहीं दिला सके। यहां भी पूर्व सीएम हरीश रावत का असर नजर आया। उन्होंने हरिद्वार में भी कांग्रेस के लिए प्रचार किया और अपनी पूरी टीम को मैदान में उतारा था।
कैबिनेट मंत्री हरक सिंह की सीट कोटद्वार भी भाजपा के हाथ से फिसल गई। हरक सिंह रावत पूरे चुनाव में जीत का दावा करते रहे, लेकिन जब परिणाम सामने आए तो भाजपा को यहां शर्मनाक ढंग से तीसरे स्थान पर रहना पड़ा। इससे हरक सिंह रावत की योग्यता का चुनावी प्रबंधन पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
मुख्यमंत्री को छोड़ कोई भी नेता अपनी विधानसभा सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ाते हुए नजर नहीं आए। हरक सिंह की बात करें तो, उनको लेकर सूत्रों से जो भी खबरें सामने आई। उससे एक बात तो साफ हो गई थी कि, हरक सिंह टिकट वितरण से नाराज हैं। भाजपा संगठन ने उनको यहां पूरी तरह नजर अंदाज किया। बीच में ऐसी भी खबरें आई थी कि हरक सिंह भाजपा की बागी प्रत्याशी के लिए काम कर रहे हैं। अजट भट्ट भी अपने क्षेत्र में कम ही नजर आए। उन्होंने औपचारिकता निभाने भर के लिए क्षेत्र में चक्कर लगाए। पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक भी इन चुनाव में पूरी ताकत से काम करते हुए नजर नहीं आए। मदन कौशिक भी आमतौर पर जिस तेजी से काम करते हैं, वो चुनावी प्रबंधन में कहीं नजर नहीं आए। यूं कहें कि जिन बड़ी सीटों पर हारे हैं। वहां भाजपा की फूट साफ नजर आई है।

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