मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के ओएसडी समेत चार पर लाखों के गबन का आरोप, 5 फरवरी को अगली सुनवाई

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देहरादून: मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के ओएसडी जेसी खुल्बे और कृषि विभाग के 3 पूर्व और वर्तमान अफसरों के खिलाफ अलग-अलग योजनाओं में सरकारी धन गबन करने का आरोप लगा है। 70 लाख रुपये के गबन मामले में ओएसडी जेसी खुल्बे समेत 4 के खिलाफ देहरादून के मुख्य न्यायिक जज एमएम पांडेय की अदालत में शिकायत दर्ज की गई है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 5 फरवरी तय की है। पूर्व कृषि सहायक अधिकारी रमेश चंद्र चौहान की शिकायत के आधार पर कोर्ट ने मामले में राज्य सरकार को निष्पक्ष जांच के लिए सक्षम अधिकारी नियुक्त कर आगे की कार्रवाई करवाने के निर्देश दिए हैं।

शिकायतकर्ता रमेश चंद्र चौहान ने सितंबर माह में कोर्ट में शिकायत कर चकराता व कालसी इलाके में केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई कार्य योजना में गड़बड़ी वाले दस्तावेज की जांच करवाने और मामले की कानूनी कार्रवाई की मांग की थी। शिकायतकर्ता के अनुसार साल 2015 में ‘समेकित जलागम प्रबंधन योजना कार्यक्रम’ और राष्ट्रीय जलागम विकास योजना के तहत अलग-अलग योजनाओं पर कार्य किया जा रहा था। केंद्र सरकार द्वारा संचालित दोनों योजनाओं में मुख्यमंत्री के ओएसडी जेसी खुल्बे उस वक्त कृषि व भूमि संरक्षण अधिकारी के पद तौर पर चकराता में तैनात थे।

शिकायतकर्ता का आरोप है कि उस समय कृषि विभाग के सहायक अधिकारी ओमवीर सिंह, निदेशक गौरी शंकर सहित मुख्य कृषि अधिकारी विजय देवरानी भी उनके साथ गबन में शामिल थे। शिकायतकर्ता ने कोर्ट से कहा है कि कृषि विभाग के सहायक अधिकारी ओमवीर सिंह ने जेसी खुल्बे के साथ मिलकर कार्य योजना के अंतर्गत कई फर्जी बिल व मजदूरों के फर्जी प्रमाण पत्र भी बनवाये थे। ये मामले तब सामने आए जब गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए चकराता क्षेत्र के 2 गांवों में हुई कार्यों की जांच की गई। जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि जिन लोगों को कागजों में मजदूर दिखाया गया था उनमें से कुछ दिव्यांग थे तो कुछ कॉलेजों के छात्र थे। इसके बाद शासन स्तर पर मामले की जांच भी हुई, जिसमें फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई।

शिकायतकर्ता रमेश चंद चौहान ने के अनुसार, सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मामले की जानकारी मांगी और जुलाई में थाना पटेलनगर को तहरीर दी लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद 30 अगस्त को रमेश चंद ने एसएसपी को भी शिकायत की थी, लेकिन मामले को गंभीरता से लिये जाने की वजह से शिकायतकर्ता ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में 156(3) के तहत एफआईआर दर्ज कराने के लिए प्रार्थना पत्र दाखिल किया।

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