200 साल पुराने पर्व हिलजात्रा में उमड़े हजारों लोग, जानिए विशेषता..

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पिथौरागढ़: देवभूमि अपने प्राकृतिक सौन्दर्य से देश-विदेश के सभी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य को संजोये रखने का श्रेय यहाँ के लोगों को ही जाता है, यहाँ के लोग प्रकृति प्रेमी होने के कारण इससे जुड़े कई तरह के त्यौहार मनाते हैं और खास बात ये है कि, प्रकृति से जुड़े ये त्यौहार भी सदियों से परंपरागत रूप से चलते हुए आज भी अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। इनमे से ही लगभग 200 सालों से मनाये जाने वाला एक हिलजात्रा पर्व है।

लोक संस्कृति को संजोऐ हुऐ यह पर्व  फसलों के पकने का स्वागत करने के लिये व अच्छी फसल प्राप्त करने के लिये और अपने लोक देवता को प्रसन्न करने के लिये मनाया जाता है। हिलजात्रा मुख्य रूप से उत्तराखण्ड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ में मनाया जाने वाली, जो पूरे हिमालयी क्षेत्र में मनाऐ जाने वाले लोगों की संस्कृति का एक त्यौहार है। पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय के कुमौड़ गाँव में इस हिलजात्रा को पिछले 200 सालों से मनाया जा रहा है। इस साल बारिश के कहर के बावजूद हिलजात्रा के गवाह 30 हजार लोग बने।

हिलजात्रा में लोग अपने कृषि कार्यो का प्रर्दशन करते हैं कि, किस प्रकार उन्होंने इस खेती को बुआई के दिनों से अब तक अपने खेतों में मेहनत की है और अब फसल के पूरा होने का समय है। उस फसल से अच्छी बरकत आई, इसी  उल्लास के साथ वे लोग अपने ईष्ट को प्रसन्न करते है। उसी के दर्शन हमें इस हिलजात्रा के माध्यम से हो रहा है। मुख्य रुप से पहाडों में कृषि कायों को सम्पादित करने में जिन-जिन प्रकारों की जरुरत पड़ती है, उन्हीं क्रिया कलापों को हिलजात्रा के माध्यम से प्रदर्षित किया जाता है।

हिलजात्रा का मुख्य आकर्षण लखिया भूत का मंचन होता है। लखिया को भगवान शिव का गण माना जाता है। जब लखिया अवतरित होता है तो वह विकराल हो जाता है। इसी को वश में रखने के लिये इसके लिये दो गणों का सहयोग होता है। अपनी संस्कृति को बनाऐ रखना और उसे आने वाली पीढ़ी तक ले जाने के संरक्षण में लगे सोरघाटी के लोगों का उत्साह बढाने के लिये बडी़ संख्या में आज के दिन इस ओर रुख करते हैं।

एक विशेष सांस्कृतिक आस्था और भगवान शिव की अराधना का उत्सव हिलजात्रा में प्रयोग आने वाले मुखौटों को महर भाईयों की वीरता पर नेपाल के राजा ने आज से 200 साल पहले पुरुस्कार में दिया था। जिसको यहाँ के लोग आज भी निभा रहे है। दो सदी बीत जाने के बाद भी यहाँ के लोग इस परम्परा को पीढ़ी-दर-पीढ़ी मनाते आ रहे हैं। अब यह हमारी परम्परा का हिस्सा है। भगवान शिव के गण बलभद्र का एक रुप लखिया जिसमें स्थानीय लोगों की अपार श्रद्धा है, जिसके दर्शन के लिये सुबह से ही लोग यहाँ एकत्रित होते हैं।

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