स्याह हकीकतः मौत को दावत देती ये लाचारी! देखें रिपोर्ट

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एपिसोड 1
देहरादूनः एक तो गरीबी जहां दो जून की रोटी जोड़ना भी नसीब में नहीं होती, वहीं यदि कहा जाए कि आपको शौचालयों में ही जाकर शौच करना है और वो भी पैसे देकर, तो भला कैसे इंसान इस पहल में अपना सहयोग दे सकेगा।

स्वच्छ भारत मिशन के बाद बारी आई खुले में शौच मुक्त देश बनाने की। कागज पर तो यह योजना भी स्वच्छ भारत अभियान की ही तरह सफल हो चली है लेकिन वास्तव में धरातल पर देखा जाए तो हम उदाहरण आपको अपने ही प्रदेश से दे देते हैं। प्रदेश की राजधानी देहरादून के बीचों बीच स्थित सहारनपुर चौक इलाका का है जिसके मात्र 10 कदम अंदर चलकर ही लक्खीबाग दरबंगा पड़ता है। इस इलाके में हैरानी की बात तो यह है कि क्षेत्र में दो-दो शौचालय होने के बावजूद भी खुले आम क्या बच्चे, क्या पुरूष और क्या महिलाएं, सभी खुले में शौच करते हैं।

देखिए हैलो उत्तराखंड न्यूज के साथ ओडीएफ योजना की असल रिपोर्ट-

हैलो उत्तराखंड न्यूज़ की टीम जब आज इस क्षेत्र में पहुंची तो सबसे पहले हमें नजर आया कि खुले में एक बच्चा शौच कर रहा है। सोचा चलो बच्चा है। लेकिन जब बच्चों से व स्थानीयों से लेकर महिलाओं तक पूछा गया तो हकीकत ही कुछ और निकली। बताया गया कि सभी यहां पर खुले आम शौच करते हैं, इंतजार रहता है कि कब अंधेरा हो और लोटा पार्टी चले। लेकिन जब इस हकीकत में अंदर झांक कर देखा गया तो पता चला कि इस क्षेत्र दरबंगा में दो-दो शौचालय तो हैं, लेकिन उसमें भी पैसा देना पड़ता है। भला अब आप ही सोचिए कि एक दिन में 100 रूपए कमाने वाला व्यक्ति कैसे परिवार के लोगों को एक बारी का 5 रूपया दे।

उससे भी हैरान कर देने वाली बात तो तब सामने आई जब शौचालय में जाकर पता चला कि शौचालय तो किसी संस्था ने बना दिया। बकायदा अपने कर्मचारियों को तनख्वाह भी दी जाती है लेकिन दूसरे हाथ से इन गरीब व लाचार लोगों से भी पैसा वसूला जाता है। सोचने वाली बात यह है कि एक संस्था का काम और मकसद होता है निस्वार्थ सेवा करना। लेकिन यहां इसका उल्टा ही नजर आ रहा है।

वहीं जब इसका जिक्र पार्षद से किया गया तो जवाब मिला कि मेन्टेन व सफाई रखने के लिए ही पैसा लिया जाता है। लेकिन सवाल यह है कि जब पैसा कर्मचारियों को संस्था दे रही है तो फिर इन लोगों का फायदा क्यों उठाया जा रहा है?

इस जमीनी हकीकत से साफ है कि जहां नगर निगम को क्षेत्र वासियों के लिए सुलभ शौचालयों का निर्माण करवाना चाहिए था, निगम ने शौचालय निर्माण के लिए संस्था को जमीन तो दी  लेकिन अपना फर्ज आधा ही निभाया। कभी पीछे पलट कर यह नहीं देखा कि जिस सुलभ शौचालय का निशुल्क फायदा लोगों को उठाना चाहिए था, उसका फायदा उन्हें मिल भी रहा है कि नहीं।

वीडियो में आपको साफ नजर आ रहा होगा कि किस तरह स्थानीय व्यवसाई परेशान हैं आस-पास खुले में शौच को लेकर। व्यापारियों का कहना है कि इस गंदगी से उनका जीना दूभर हो गया है। यहां आए दिन बीमारियां फैलती रहती हैं, लेकिन इसके प्रति किसी को फिक्र नहीं।

लेकिन ये लोग भी क्या करें ये मजबूर हैं खुले में शौच करने के लिए, क्योंकि इनके पास प्रर्याप्त पैसा नहीं है कि ये लोग पेड शौचालयों में जाएं और स्वच्छ भारत, स्वच्छ अभियान का हिस्सा बने।

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