केदारनाथ विकास प्राधिकरण को मिली मंजूरी…क्या प्राधिकरण प्रस्ताव के पीछे छुपा है कोई मकसद?

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उत्तराखंड सचिवालय में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में प्रमुख मंदिरों के लिए प्राधिकरण के गठन का प्रस्ताव रखा था। प्रस्ताव पटल पर रखते ही वन मंत्री हराक सिंह ने अपनी दलील पेश कि और प्रस्ताव पर असहमति जताई। तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि प्राधिकरण का गठन करना मतलब राज्य सरकार के ऊपर बोझ बढ़ाना है।

वही वन मंत्री हरक सिंह रावत ने जब हैलो उत्तराखंड से बात की तो उनका कहना था की प्राधिकरण का गठन, सफ़ेद हाथी को पलने सामान है। प्राधिकरण मुक्त होने के बावजूद भी सरकार पर बोझ बन जाता है। उन्होंने कहा कि नागरिक उड्डयन, साडा, जैसे कई प्राधिकरण का गठन किया गया है जो राज्य के लिए महज सरदर्दी बनी हुई है।

पर्यटन सचिव मिनाक्षी सुन्दरम ने हैलो उत्तराखंड को बताया कि केदारनाथ विकास प्राधिकरण का ढांचा कैबिनेट कि बैठक में पेश किया गया था जो स्वीकृत हो चूका है। उन्होंने कहा कि २०१३ में टूरिस्म को प्रमोट करने के लिए २ प्राधिकरण बनाये गए थे, टिहरी लेक विकास प्राधिकरण और केदारनाथ विकास प्राधिकरण जिनके ढांचो को मंजूरी मिलना बाकि था इसलिए केदारनाथ डेवलपमेंट अथॉरिटी के ढांचे को मंजूरी दे दी है और अगली कैबिनेट बैठक में टिहरी का ढांचा भी पेश किया जायेगा। साथ ही उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल ने केदारनाथ विकास प्राधिकरण में 14 पदों को मंजूरी दी है जिसके मुख्य कार्यपालक अधिकारी रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी होंगे।

वही केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने हैलो उत्तराखंड को बताया की केदारनाथ प्राधिकरण अगर केवल गौरीकुंड तक सिमित रहेगा तब तो ये अच्छा है लेकिन अगर इसकी जद में गौरीकुंड से निचे के गाँवों को भी शामिल किया जायेगा तो ये गाँव वालो के साथ अन्याय होगा साथ ही चिंता का विषय भी है।

प्रदेश में गठित कई प्राधिकरण सरकार को मुनाफा देने के बजाये, घाटे का सौदा बने हुए है। और सरकार को पैसा देना तो दूर अपना खर्चा भी प्राधिकरण वहन नही कर पा रहे है, तो आखिर क्यों पर्यटन विभाग और पर्यटन मंत्री केदारनाथ प्राधिकरण का प्रस्ताव पटल पर लाये।

ऐसे में सवाल ये उठता है की कही पर्यटन विभाग के आकाओं का इसके पीछे कोई छुपा मकसद तो नही है ?

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