कब तक यू ही होते रहेंगे पत्रकारों पर हमले…

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देहरादून: बेंगलुरु में वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की कल राज राजेश्वरी इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जिसके बाद एक बार फिर कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं। हिंदुत्ववादी राजनीति के खिलाफ खुलकर विचार जाहिर करने वाली वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश काे उनके घर पर घुसकर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी। गौरी कन्नड़ टैब्लॉयड ‘गौरी लंकेश पत्रिका’ का संपादन करती थीं।

16 पन्नों की उनकी पत्रिका ‘गौरी लंकेश पत्रिके’ हर हफ्ते निकलती है, जिसकी कीमत 15 रुपये है। 13 सितंबर का अंक इसका आख़िरी अंक साबित हुआ।

ये कोई पहली बार नहीं है जब किसी पत्रकार को मौत के घाट उतार दिया गया हो लेकिन फिर भी हर कोई मौन बने बैठे रहते हैं, पत्रकार संघ, पत्रकार की मौत के दौरान तो खूब शोर मचाते हैं लेकिन कुछ समय बाद फिर चुप्पी साध कर बैठ जाते हैं मानो कुछ हुआ ही न हो और आगे कुछ होगा भी नहीं।

हमारे देश के संविधान में पत्रकारिता को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा दिया गया है, ये शुरू से ही विख्यात है की जो पत्रकार किसी के खिलाफ लिखता है या किसी का पर्दाफाश करता है, उसे चुप करने के लिए कई हथकंडे अपनाये जाते है, लेकिन डराने और धमकाने के बावजूद बेबाकी से लिखने वाले पत्रकारों को अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ता है।

अगर पत्रकार समाज संगठित होकर एक दूसरे के हक के लिए लड़े तो क्या ये मुमकिन नहीं कि पत्रकार जगत से जुड़े सभी लोगो को उनके हक मिल जायें। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि टीआरपी और खुद को श्रेष्ट दिखाने की दौड़ में हम पत्रकार कभी संगठित हो ही नहीं सकते हैं, बल्कि दिनों-दिन विभाजित ही होते जा रहे है। इतिहास गवाह है कि आज तक जितने भी पत्रकारों ने किसी सत्ताधारी, बाहुबली, और ऊँची पहुंच वाले के खिलाफ लिखा है उसका हस्र यही हुआ है।

आइए हाल ही के उन वारदातों पर नजर डालते हैं जिसमें पत्रकारों की निर्मम हत्या कर दी गई।

# 13 मई 2016 को सीवान में हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई। ऑफिस से लौट रहे राजदेव को नजदीक से गोली मारी गई थी। इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है।

# मई 2015 में मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले की कवरेज करने गए आजतक के विशेष संवाददाता अक्षय सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। अक्षय सिंह की झाबुआ के पास मेघनगर में मौत हुई। मौत के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है।

# जून 2015 में मध्य प्रदेश में बालाघाट जिले के अपहृत पत्रकार संदीप कोठारी को जिंदा जला दिया गया। महाराष्ट्र में वर्धा के करीब स्थित एक खेत में उनका शव पाया गया।

# साल 2015 में ही उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया। आरोप है कि जगेंद्र सिंह ने फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ खबरें लिखी थीं।

# साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान नेटवर्क 18 के पत्रकार राजेश वर्मा की गोली लगने से मौत हो गई।

# आंध्रप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की 26 नवंबर 2014 को हत्या कर दी गई। एमवीएन आंध्र में तेल माफिया के खिलाफ लगातार खबरें लिख रहे थे।

# 27 मई 2014 को ओडिसा के स्थानीय टीवी चैनल के लिए स्ट्रिंगर तरुण कुमार की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई।

# हिंदी दैनिक देशबंधु के पत्रकार साई रेड्डी की छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या कर दी थी।

# महाराष्ट्र के पत्रकार और लेखक नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को मंदिर के सामने उन्हें बदमाशों ने गोलियों से भून डाला।

# रीवा में मीडिया राज के रिपोर्टर राजेश मिश्रा की 1 मार्च 2012 को कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी। राजेश का कसूर सिर्फ इतना था कि वो लोकल स्कूल में हो रही धांधली की कवरेज कर रहे थे।

# मिड डे के मशहूर क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की 11 जून 2011 को हत्या कर दी गई। वे अंडरवर्ल्ड से जुड़ी कई जानकारी जानते थे।

# डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के खिलाख आवाज बुलंद करने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की सिरसा में हत्या कर दी गई। 21 नवंबर 2002 को उनके दफ्तर में घुसकर कुछ लोगों ने उनको गोलियों से भून डाला।

इसके अलवा अगर हम आये-दिन पत्रकरों में होने वाले हमलों की बात करे तो वो तो अनगिनत हैं, हर किसी पत्रकार को जो घोटाले या किसी धांधली को उजागर करने के लिए लिखता है उसे हमेशा ही खौफ के साए में ही रहना पड़ता है।

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