उम्र 76 और हौसला 25 का, पढ़िए कहानी एक पहाड़ी काश्तकार की.

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रूद्रप्रयाग

कुलदीप राणा

उम्र 76 की हौसला 25 का

कहते हैं हौसले बुलंद हो तो फिर कठिन से कठिन बाधा भी घुटने टेक देती है। एक ओर जहां रोजगार के लिए पहाड़ के लोग खेती छोड़ कर मैदानी शहरों का रूख कर रहे हैं और बडी मात्रा में यहां की खेती बाडी बंजर का रूप धारण कर रही हैं तो वहीं 76 बरस के बिश्वेसर प्रसाद नौटियाल परंपरागत फसल को छोड़कर व्यवसायिक खेती कर एक मिशाल पेश कर रहे हैं।

रूद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से सटे गांव डांगसेरा के बिश्वेसर प्रसाद ने अपनी उपजाऊ जमीन पर गेंहू धान की फसल से अधिक लाभ न होते देख सब्जी लगाने का मन बनाया ।  पिछले वर्ष बरसात के समय मजबूत इरादो से वे इस कार्य में जुटे तो अच्छी सब्जियां हुई और अच्छा मुनाफा भी हुआ।  फिर क्या था आगे इस काम को और अधिक विस्तार देने का मन बनाया और इस बार पूरे 8 नाली भूमि पर पत्ता गोभी, प्याज, लहसुन, मैथी आदि सब्जियां लगाई हुई हैं ।

 पहाड़ो के नौजवान आज भारी संख्या में यहा से पलायन कर दिल्ली मुंबई जैसे बडे बडे महानगरों का रूख कर रहे हैं जबकि उन्हें सम्मानजनक रोजगार वहा भी नहीं मिल पाता है ।  बिश्वेसर प्रसाद उम्र के अंतिम पायदान पर होने के बाद भी 25 वर्ष के नौजवान जैसा जज्बा कही ना कही सरकार के तमाम नीतियों योजनाओं को आईना जरूर दिखा रही है जो पलायन रोकने के उद्देश्य से खेती किसाणी और तरह तरह की योजनाओं से करोड़ो अरबो रूपयो का बजट ठिकाने लगाती हैं उससे बाद भी रिजल्ट शून्य ही रहता है ।

नौटियाल जी कहते हैं परंपरागत फसलों से कुछ लाभ नहीं होता है जबकि मेहनत अधिक करनी पडती है ।  सरकार की ओर कुछ सहायता मिलने के सवाल पर वे कहते हैं पिछले साल जिला उद्यान अधिकारी ने बगीचे को देखने आये तो थे पर कुछ सहायता नहीं की ।

आगे वे कहते हैं कि सरकारी योजनायें कागजों और भाषणो में सिमट जाती हैं… वास्तव में यह सवाल अहम हो जाता है कि आखिर सरकार की तमाम योजनायें बिश्वेसर प्रसाद जैसे काश्तकारों तक क्यों नहीं पहुँच पाती हैं ???

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