उत्तराखंड पंचायत चुनाव: यहाँ जिला पंचायत अध्यक्ष-उपाध्यक्ष को लेकर दिलचस्प मिथक, जानिए..

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बागेश्वर: जिला पंचायत अध्यक्ष-उपाध्यक्ष की चुनावी जंग में बड़ी कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। सत्त्ताधारी दल बीजेपी अपने प्रत्यासी के जीत का दम भर रहे हैं, तो वहीँ कांग्रेस भी अध्यक्ष पद पर अपनी जीत का दावा कर रही है। वहीँ बात करें जिला पंचायत उपाध्यक्ष पद की तो यहां कांग्रेस अपना कोई प्रत्यासी नहीं उतार पाई। गरुड़ ब्लॉक में प्रमुख पद पर भी कोई प्रत्यासी नहीं, केवल बागेश्वर कपकोट ब्लॉक में कुल प्रत्यासियों को मिलाकर त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है।

जिला पंचायत में अध्यक्ष- उपाध्यक्ष एक ही खेमे के बनेंगे या फिर अध्यक्ष एक खेमे का और उपाध्यक्ष दूसरे खेमे का ?

जिला पंचायत बागेश्वर में भाजपा-कांग्रेस में से किस पार्टी के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बनेंगे, ये तो 7 नवंबर को शाम तक सामने आ ही जायेगा, लेकिन कुछ ऐसे मिथक इस जिला पंचायत से जुड़े हैं, जिन पर गौर करना भी आवश्यक है। अब तक की बाहरी तस्वीर को देखकर यही माना जा रहा है कि, जिला पंचायत के कुल 19 जिला पंचायत सदस्यों में से 10 भाजपा खेमे में हैं तो 9 कांग्रेस खेमे में हैं। अब अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एक ही खेमे के बनेंगे या फिर अध्यक्ष एक खेमे का और उपाध्यक्ष दूसरे खेमे का, इस पर संदेहास्पद स्थिति कही जा सकती है।

यहाँ जिला पंचायत में पूर्व से ही ऐसा होता आया है। साल 2014 में जिला पंचायत के चुनाव में भाजपा ने अध्यक्ष पद में गोविंद दानू को अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया था। तो वहीँ ज्योति दफौटी को उपाध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया था। तब जिला पंचायत सदस्यों की संख्या 20 थी। इस चुनाव में अध्यक्ष पद के प्रत्याशी दानू को 10 मत मिले थे, लेकिन उपाध्यक्ष पद की प्रत्याशी ज्योति को केवल 9 मत ही मिले। उपाध्यक्ष पद की तीसरी प्रत्याशी जानकी मेहता को 1 मत मिला था। उपाध्यक्ष पद में कांग्रेस प्रत्याशी देवेन्द्र परिहार 10 मतों के साथ जीतने में कामयाब रहे थे।

इसमे साफ था कि भाजपा के उपाध्यक्ष पद प्रत्याशी को भाजपा के अध्यक्ष पद प्रत्याशी से 1 वोट कम मिला था। जबकि भाजपा के दोनों प्रत्याशियों को 10- 10 मत मिलने चाहिये थे। यहां उपाध्यक्ष पद में भाजपा खेमे के एक सदस्य ने कांग्रेस के प्रत्याशी के पक्ष में अपना मत डाला। साल 2008 के जिला पंचायत चुनाव की बात करें तो तब जिला पंचायत में कुल 19 सीटें थी और तब अध्यक्ष पद में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के रूप में राम सिंह कोरंगा को 10 मत मिले थे, जबकि उपाध्यक्ष पद में भाजपा प्रत्याशी विक्रम सिंह शाही को 11 मत मिले थे। मतलब यहां कांग्रेस खेमे के एक सदस्य ने उपाध्यक्ष पद में भाजपा प्रत्याशी को अपना मत दिया। 2002- 03 के जिला पंचायत चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में दीपा आर्या जीती, लेकिन उपाध्यक्ष पद में कांग्रेस के सुंदर सिंह मेहरा ने भाजपा के शेर सिंह गडिया को हराकर जीत दर्ज की थी।

गौरतलब है कि अब तक के जिला पंचायत चुनाव में 1 मत की बहुत बड़ी भूमिका रही है और इस बार भी 1 मत से ही जिला पंचायत में सरकार बनने- बिगड़ने की संभावनाएं जतलाई जा रही है। अब इस बार भी देखने वाली बात होगी कि अध्यक्ष-उपाध्यक्ष एक ही खेमे के बनते हैं या फिर अध्यक्ष एक खेमे का और उपाध्यक्ष दूसरे खेमे का बनता है।

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