बागेश्वर: ‘उत्तरायणी कौतिक’ में पहाड़ी उत्पादों की धूम, दुर्लभ होती जड़ीबूटीयों की भी जमकर खरीददारी

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बागेश्वर: कुमाऊं की काशी के नाम से विश्व विख्यात बाबा बागनाथ नगरी बागेश्वर में सबसे प्राचीन उत्तरायणी कौतिक में लोग जमकर इस मेले का जमकर लुत्फ़ ले रहे हैं।
शिव नगरी बागेश्वर में आयोजित कुमाऊं का सुप्रसिद्ध उत्तरायणी का मेला अपने शबाब पर है। मेले में आयोजित कार्यक्रमों का लुत्फ उठाने दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं। मेले में लगे विभिन्न सरकारी स्टॉलों से लोग जहां सरकार द्वारा जनहित योजनाओं के बारे में जानकारी भी ले रहे हैं, वहीं दारमा, व्यास, चौंदास, जोहार, दानपुर के व्यापारियों से आज की आधुनिकता वादी दौर में दिन-प्रतिदिन दुर्लभ होती जड़ीबूटी, दन, सूपे, डलियों की भी खरीददारी कर रहे हैं। माघ माह में मकर संक्रांति के दिन से आठ दिनों तक चलने वाले ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले में हजारों की संख्या में मेलार्थी व श्रद्वालुओं का रोज तांता लगा है। मेले में लगी प्रदर्शनी से लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में भी काफी जानकारी मिल रही है। उद्योग, वन, आजीविका, समाज कल्याण, कृषि, उरेडा समेत अन्य विभाग लोगों को उनके विभाग से मिलने वाली सुविधाओं के बारे में बता रहे हैं।
उत्तरायणी मेले में दारामा, जोहर, व्यास, चौंदास और दानपुर से आए व्यापारियों का भी दुर्लभ होती जड़ीबूटी व दन, कालीन का सामान भी जमकर बिक रहा है। पेट, सिर, घुटने आदि दर्द के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली गंदरेणी, जम्बू, कुटकी, डोला, गोकुल मासी, ख्यकजड़ी आदि जड़ीबूटी को अचूक इलाज माना जाता है। मुनस्यारी से आए व्यापारी पूरन बताते हैं कि वो बिच्छू घास के साथ ही भांग के रेसों का शॉल बनाते हैं, जिनकी डिमांड भी खूब रहती है।

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