देहरादून के अपर तलाई एवं अल्मोड़ा के मलाड गाँव को श्रेष्ठ कार्य के लिए प्रथम पुरस्कार

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देहरादून: मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने बुधवार को एफ.आर.आई देहरादून में उत्तराखण्ड विक्रेन्द्रीकृत जलागम विकास परियोजना के अन्तर्गत ’’क्लाइमेट रेजिलेंस माउण्टेन एग्रीकल्चर सम्मेलन’’ (SUMMIT ON CLIMATE RESILIENT MOUNTAIN AGRICULTURE) का दीप प्रज्ज्वलित कर शुभारम्भ किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने परियोजना कार्यों में विभिन्न क्षेत्रों जैसे ग्राम समिति में महिलाओं की सहभागिता, जल संग्रहण एवं संवर्द्धन, जल स्रोतों के उपचार आदि में श्रेष्ठ कार्य करने वाले 09 ग्राम पंचायतों को सम्मानित किया। जिन ग्राम पंचायतों के प्रधानों के सम्मानित किया गया, उनमें देहरादून के रायपुर ब्लॉक के अपर तलाई एवं अल्मोड़ा के धौलादेवी ब्लॉक के मलाड ग्राम पंचायत को प्रथम पुरस्कार दिया गया। जबकि पिथौरागढ़ के मुनस्यारी विकासखण्ड के भेसखाल को द्वितीय पुरस्कार तथा 06 अन्य ग्राम पंचायतों को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने जलागम प्रबन्ध निदेशालय द्वारा प्रकाशित ग्राम्य विकास से सम्बन्धित केन्द्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं पर आधारित पुस्तक ‘केन्द्राभिसरण’ एवं ‘क्लाइमेट रेजिलेंस इनिशिएटिव’ पुस्तकों का विमोचन भी किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सेमिनार महत्वपूर्ण विषयों को लेकर आयोजित किया जा रहा है। जिसमें जलवायु परिवर्तन पर विशेषज्ञों द्वारा गहनता से मंथन किया जायेगा। उन्होंने कहा कि परिवर्तन के दौर में हमें स्वयं को भी परिवर्तित करना होगा। उन्होंने कहा कि आज सोच को बदलने की जरूरत है। बाजार की मांग पर उत्पादों का वैल्यू एडिशन करना होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने ’मन की बात’ में बागेश्वर की महिलाओं का जिक्र किया। बागेश्वर में महिलाओं ने स्थानीय उत्पादों का वैल्यू एडिशन कर मंडुवे के बिस्कुट तैयार किये। श्री बद्रीनाथ धाम में भी इस तरह का प्रयोग शुरू किया गया था। यहाँ महिला स्वयं सहायता समूह ने मंडुआ, कुट्टू, चौलाई से मंदिर का प्रसाद तैयार किया और पिछले सीजन में 19 लाख रुपये का प्रसाद बेचकर 09 लाख रूपये की शुद्ध लाभ प्राप्त किया। चमोली जिले के घेस गांव में मटर की जैविक खेती को प्रोत्साहित किया गया। मटर की खेती से घेस में किसानों की आय में 05 से 08 गुना तक की वृद्धि हुई। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐरोमैटिक प्लांट की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। मसालों की खेती को भी प्रदेश में बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि नैनीतल में टी-टूरिज्म के क्षेत्र में भी काफी सफलता मिली है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड में सीमित कृषि योग्य भूमि है, जबकि अधिकतर सिंचाई विहीन है। हमें खेती के लिए आधुनिक तकनीक के प्रयोग पर अधिक बल देना होगा। पर्वतीय क्षेत्र में बेमौसमी फलों एवं सब्जियों के उत्पादन पर ध्यान देने की जरूरत है। वर्षा के जल का संचय करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि रिस्पना एवं कोसी नदी के पुनर्जीवीकरण का जो अभियान चलाया जा रहा है, इसमें नदियों के किनारे 30 प्रतिशत फलदार वृक्ष लगाये जायेंगे। जंगली जानवरों से खेती बचाने के लिए जंगलों में फलदार वृक्षों को लगाना जरूरी है।

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