ट्रांसफर के मकड़जाल में फंसी शिक्षकों की ’’जिंदगी’’

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देहरादून: शिक्षा विभाग की मनमानी और सेटिंग के खेल ने एक शिक्षक की जिंदगी को बर्बादी के करीब ला दिया है। शिक्षा मंत्री भले ही दबंगों वाले बयान देते हों, लेकिन उनके अधिकारी उनकी दबंगई से डरने वाले नहीं हैं। शिक्षा विभाग में विजनेस बन चुके ट्रांसफर धंधे के दाम एक्ट के बाद दाम और बढ गए। मनमानी और सेटिंग ऐसी कि नियम और ट्रांसफर एक्ट तक बौने पड़ रहे हैं। पिथौरागढ़ के सीमांत मुनस्यारी के मवानी प्राथमिक विद्यालय में तैनात चमोली पोखरी निवासी शिक्षक कमलेश किमोठी की पत्नि मानसिक रूप से बीमार थीं। किमोठी अपनी पत्नि के इलाज के लिए प्रार्थना पत्र देते गए, लेकिन उनकी प्रार्थनाएं संवेदहीन हो चुके मखमली कुर्सियों और वातानुकूलित कमरों में बैठे अधिकारियों को ना तो सुनाई दीं और ना दिखाई दीं।
दो दिन पहले कमलेश किमोठी की पत्नि घर से बगैर बताए कहीं चली गई। खोज-बीन की, लेकिन कहीं पता नहीं चला। दर-दर भटकने के बाद गोरी नदी के तट पर उनकी चप्पलें और वो कूड़ेदान जरूर मिला, जिसे लेकर लोगों ने उनको जाते देखा। आशंका जताई जा रही है कि या तो गोरी नदी में खुद समा गई या फिर गोरी नदी को वेग उनको अपने साथ हवा ले गया। अपनी पत्नि के इलाज के लिए अधिकारियों के चैखटों पर दस्तक देते उनके कमलेश किमोठी कुछ समझ नहीं पा रहे हैं कि अब वो क्या करें।
सवाल ये नहीं कि कमलेश किमोठी की पत्नि जिंदा होंगी भी या नहीं। वो जिंदा हों, ऐसी हम उम्मीद करते हैं। लेकिन, अगर वो मुर्दा हुई, तो कमलेश किमोठी को उनका शव मिलना भी मुमकिन नहीं लगता। बरसात चरम पर है और गोरी नदी का वेग उफान पर। ऐसे मंे संभावाएं कम ही नजर आती हैं। अब असल सवाल पर आते हैं। कमलेश किमोठी 2009 से मुनस्यारी के मुवानी स्कूल में तैनात हैं। पत्नि की अच्छे से देखभाल हो। उसके लिए उन्होंने बंगापानी में कमरा भी लिया था। पत्नि मानसिक रूप से बीमार थी। वो चाहते थे कि उनको देहरादून में स्थानांतरिक किया जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। नियम पहले से भी था, बाद में जब एक्ट बना, उसमें भी प्रावधान किया गया कि ऐसे परस्थियों में स्थानांतरण किया जा सकता है।
फिर कमलेश किमोठी के मामले में ऐसा क्या हुआ कि हर कोई उनको वहीं धकेलते चला गया। पत्नि के इलाज के लिए सैकड़ों किलोमीटर चलकर देहरादून आते थे। जब भी आए अधिकारियों से गुहार जरूर लगाई, पर किसी ने नहीं सुनी। किमोठी ने 2016 में हाईकोर्ट में भी गुहार लगाई थी। कोर्ट ने भी उनका पक्ष सुनने को कहा था, लेकिन बहरे हो चुके सिस्टम और ट्रांसफर विजनेस उनके आड़े आ गया। उनका स्थानांतरण नहीं किया गया।
भाजपा सरकार और सरकार के दबंग शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे और जुमला बन चुके जीरो टाॅलरेंस वाले मुख्यमंत्री का ट्रांसफर एक्ट भी उनके काम नहीं आया। एक्ट के तहत पहले 10 जून को ट्रांसफर होने थे। उसकी तारीखी बढ़ती चल गई। पिछले दिनों विभाग ने ट्रांसफर किए, लेकिन इस बार भी कमलेश किमोठर का ट्रांसफर नहीं किया गया। सवाल यहीं से खड़ा होता है कि आखिर सामन्य परिस्थियों वाले अध्यापकों को स्थानांतरण कैसे हो गया, जबकि परेशान और दर-दर भटक रहे शिक्षक के दर्जनों प्रर्थाना पत्रों के बावजूद उनका ट्रांसफर नहीं किया।
क्या शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा नहीं होना चाहिए? क्या इससे यह साबित नहीं हो जात कि शिक्षा विभाग में बगैर दक्षिणा दिए कुछ काम नहीं होते ? क्या यह साफ नहीं हो गया कि शिक्षा विभाग में बिना सेटिंग के कोई काम नहीं होता? क्या शिक्षा मंत्री और शिक्षा विभाग इन सवालों के जवाब दे पाएगा?

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