आरटीआई रैंकिंग में एक नंबर और फिसला भारत

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नई दिल्ली: सूचना अधिकार अधिनियम के पालन को लेकर जारी वैश्विक रैकिंग में भारत को झटका लगा है। देश की रैकिंग नीचे गिरकर अब छह नंबर पर पहुंच गई है। जबकि पिछले साल भारत पांचवे नंबर पर था। दुनिया के प्रमुख 123 देशों में आरटीआई कानून है। सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी (कनाडा) और स्पेन की संस्था एक्सेस इन्फो यूरोप ने इंटरनेशनल सूचना के अधिकार कानून वाले सभी देशों की रैकिंग जारी की थी। इसमें भारत को पिछले साल की तुलना में एक पायदान का नुकसान उठाना पड़ा है। खास बात है कि जिन देशों ने भारत से बाद में इस कानून को अपने देश में लागूं किया, भारत उनसे भी पिछड़ गया।
भारत में इस कानून को सूचना का अधिकार नाम से जानते हैं। वहीं, दुनिया के कई देशों में इसे राइट टू नो के रूप में जाना जाता है। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने भारत में 12 अक्टूबर आरटीआई डे के मौके पर जारी रिपोर्ट में भारत की अंतरराष्ट्रीय रैकिंग गिरने की बात को सामने रखा है। देश में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों की निगरानी करने वाली इस संस्था ने देश में आरटीआई एक्ट के पालन को लेकर चैंकाने वाली तस्वीर पेश की है। संस्था ने आरटीआई एक्ट से जुड़े तीन महत्वपूर्ण सेक्शन, मसलन 25(2), सेक्शन 191(1) और सेक्शन 19(2) पर फोकस कर रिपोर्ट पेश की है।
ग्लोबल लेवल पर राइट टू नो के तहत जारी रैकिंग में अफगानिस्तान जैसा देश पहले स्थान पर है। अफगानिस्तान ने कुल 150 में से 139 प्वाइंट के साथ मैक्सिको को पीछे छोड़ नंबर 1 का तमगा हासिल किया है। खास बात है कि भारत ने आरटीआई कानून 2005 में बनाया था तो अफगानिस्तान ने नौ साल बाद यानी 2014 में इस पर अमल किया। कानून की खामियों और क्रियान्वयन में लापरवाहियों के चलते भारत को अफगानिस्तान से पीछे रह गया। सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत डाॅ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में वर्ष 2011 में 130 अंकों के साथ दूसरे नंबर पर था, जबकि 135 अंकों के साथ सर्बिया पहले स्थान पर था। 2012 में भी भारत की रैकिंग उसी स्तर पर बरकरार रही। मगर 2014 में भारत 128 अंकों के साथ तीसरे स्थान पर खिसक गया। छोटे से देश स्लोवेनिया ने 129 अंकों के साथ भारत को पीछे छोड़ते हुए दूसरा स्थान हासिल किया। 2016 में भारत चैथे स्थान पर पहुंच गया। जबकि मैक्सिको नंबर वन पर कायम रहा। अगले साल 2017 में भारत और फिसलकर पांचवें स्थान पर पहुंच गया।
चैंकाने वाली बात रही कि भारत से 11 साल बाद आरटीआई कानून बनाने वाला श्रीलंका 131 अंकों के साथ तीसरे स्थान पर पहुंच गया। 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक 138 अंकों के साथ अफगानिस्तान नंबर वन 136 प्वाइंट के साथ मैक्सिको दूसरे स्थान पर है। जबकि 135 अंकों के साथ सर्बिया और 131 अंकों के साथ श्रीलंका क्रमशः चैथे और पांचवे नंबर पर है। भारत से नीचे अब अल्बीनिया, क्रोएशिया, लिबेरिया और एल सल्वाडोर ही हैं. वर्ष 2017 में भारत चौथे नंबर पर था, जबकि जब 12 अक्टूबर 2005 को कानून लागू हुआ था, उसके बाद जारी रैकिंग में भारत दूसरे स्थान पर था। मगर बाद में कानून को लेकर लापरवाही से भारत की रैकिंग फिसलती चली गई।
सेंटर फॉर लॉ एंड डेमोक्रेसी नाम की संस्था आरटीआई लागू करने वाले सभी देशों के कानूनों और उसके पालन की हर साल समीक्षा करती है। जिस देश का कानून ज्यादा मजबूत होता है, जहां सूचनाएं छिपाने की जगह अधिक से अधिक सूचनाएं पब्लिक डोमन में सरकारी विभाग और मंत्रालय रखते हैं, जहां आरटीआई आवेदन से पहले ही सरकारी संस्थाओं की ओर से जरूरी सूचनाएं वेबसाइट पर उपलब्ध रहतीं हैं, उन देशों की रैकिंग मजबूत होती है। भारत में सूचना न देने पर 2005-2016 के बीच 18 लाख से ज्यादा लोगों को सूचना आयोगों का दरवाजा खटखटाना पड़ा। इससे पता चलता है कि देश में सूचनाएं छिपाईं जातीं हैं।
इसके अलावा भारत में सीबीआई सहित कई संस्थाएं आरटीआई के दायरे से बाहर हैं। वहीं, गोपनीयता और निजता का हवाला देकर उन सूचनाओं को बाहर आने से रोका जाता है, जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा या व्यक्ति की निजता कतई भंग नहीं होती। इसके लिए आरटीआई कानून को कुछ उपबंधों को अफसर ढाल बनाते हैं। जबकि भारत से काफी बाद में अफगानिस्तान ने आरटीआई जैसा कानून बनाया, जिसमें सूचनाओं की सहज और सामान्य उपलब्धता जनता के लिए होती है। यहां तक कि श्रीलंका ने भी भारत से बाद में मगर बेहतर कानून बनाया और लागू किया है।

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