युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति से संबंधित मामले में दो सप्ताह बाद होगी सुनवाई

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नैनीताल : हाईकोर्ट ने प्रदेश के युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति से संबंधित मामले में इसे गंभीरता से लेते हुए पूर्व में राज्य सरकार, डीजीपी, ड्रग कंट्रोलर और केंद्र के अधीन काम करने वाले स्टेट नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए थे। साथ ही हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा था कि वह इसमें सभी निजी विश्वविद्यालयों, सभी जिलों के एसएसपी व एसपी तथा निदेशक विद्यालयी शिक्षा को भी पार्टी बनाए। शुक्रवार को सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में स्थित सभी 27 विश्वविद्यालय, 13 जिलों के पुलिस अधीक्षक, उच्च शिक्षक निदेशक उत्तराखंड व माद्यमिक शिक्षक निदेशक को नोटिस जारी कर पूछा है कि उनके द्वारा अपने-अपने स्तर से क्या कदम उठाए गए हैं। इस प्रकरण पर सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी। मुख्य न्यायधीश केएम जोसेफ एवम न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।

मामले के अनुसार रामनगर निवासी तथा वत्सल नाम से गैर सरकारी संस्था चलाने वाली श्वेता मासीवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्रदेश के युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति पर रोक लगाने तथा नशे के प्रति रुझान को कम करने के लिए सरकार को निर्देश देने की गुहार लगाई है। याचिकाकर्ता ने हल्द्वानी और देहरादून में नशे की प्रवृत्ति पर हुए शोध से संबंधित आंकड़े भी प्रस्तुत किए। याचिका में कहा कि हल्द्वानी के 21 फीसदी और राजधानी देहरादून के 33 फीसदी युवा किसी न किसी नशे की गिरफ्त में हैं। नशे की यह प्रवृत्ति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। शोध में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि नशा करने वालों में 14 साल के किशोर से लेकर 30 साल तक के युवा शामिल हैं। याचिका में नैनीताल पुलिस के द्वारा नशे के खिलाफ चलाए गए सकारात्मक अभियान का भी जिक्र है। इसमें कहा गया है कि इसी तरह के अभियान अन्य जिलों में भी चलाए जाने की आवश्यकता है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि राज्य सरकार इतनी लपरवाह है कि अभी तक राज्य में सरकारी नशा उन्मुक्ति केंद्र तक नहीं बनाया गया है।

प्रदेश में मौजूद गैर सरकारी नशा मुक्ति केंद्र खस्ता हालत में हैं। नशे का सामान बाजार के हर क्षेत्र में उपलब्ध है, जो युवाओं के भटकाव में अहम भूमिका निभा रहा है। जबकि सरकार इसे बड़ा राजस्व मानकर लापरवाह बनी हुई है। पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने प्रदेश में स्थित सभी 27 विश्वविद्यालय, 13 जिलों के पुलिस अधीक्षक, उच्च शिक्षक निदेशक उत्तराखंड व माद्यमिक शिक्षक निदेशक नोटिस जारी कर पूछा है कि उनके द्वारा अपने अपने स्तर से क्या कदम उठाए गए हैं। इस प्रकरण पर सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी।

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