भीमा कोरेगांव: फ़रेरा और गोंज़ाल्विस फिर से हिरासत में, गिरफ्तारी पर उठे सवाल

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मुंबई : पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में वरनॉन गोंज़ाल्विस और अरुण फ़रेरा को शुक्रवार को मुंबई से फिर हिरासत में ले लिया। इससे पहले शुक्रवार सुबह पुणे की एक अदालत ने उनकी ज़मानत याचिका ख़ारिज़ कर दी थी। गोन्ज़ाल्वेस के वकील राहुल देशमुख ने बीबीसी मराठी को बताया कि अदालत ने इस मामले में गिरफ़्तार सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की ज़मानत याचिका भी ख़ारिज़ कर दी। सुधा भारद्वाज को पुणे लाने के लिए पुलिस को अदालत से ट्रांज़िट रिमांड हासिल करनी होगी और इसकी कोशिश शनिवार को की जा सकती है। हालांकि पुलिस शाम के बाद किसी महिला को गिरफ़्तार नहीं कर सकती। पुलिस ने भीमा कोरेगांव में एक जनवरी को हुई हिंसा के मामले में फ़रेरा, गोंज़ाल्विस, भारद्वाज के अलावा तेलुगू कवि वरवर राव और सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को अगस्त में गिरफ़्तार किया था। पुलिस का दावा है कि उसे इन अभियुक्तों के शीर्ष माओवादी नेताओं से संवाद के ईमेल मिले हैं। गौतम नवलखा को बाद में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस को हिरासत से छोड़ना पड़ा था।

56 वर्षीय सुधा भारद्वाज क़ानून की प्रोफेसर हैं और बीते 30 से अधिक सालों से आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने के लिए जानी जाती हैं। 78 वर्षीय वरवर राव तेलुगू भाषा के कवि हैं। गौतम नवलखा एक मशहूर ऐक्टिविस्ट हैं, जिन्होंने नागरिक अधिकार, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक अधिकार के मुद्दों पर काम किया है। अरुण फ़रेरा और वरनॉन गोंज़ाल्विस पेशे से वक़ील हैं। पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अदालत ने पांचों को 25 अक्टूबर तक नज़रबंद रखने का आदेश दिया था। गौतम नवलखा ने अपने ख़िलाफ़ चल रहे मामले के ख़िलाफ़ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील की थी और यह मामला एक नवंबर को सुना जाएगा। वहीं वरवर राव के केस में हैदराबाद हाई कोर्ट ने उन्हें और तीन हफ़्ते नज़रबंद रखने का आदेश दिया था। पीपल्स यूनियन फोर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) के सदस्य हरीश धवन ने बीबीसी पंजाबी के दलजीत अमी से कहा कि गिरफ़्तारी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जो विकल्प दिया वो क्रूर मज़ाक था।

धवन ने कहा कि यह कितना विरोधाभास है कि एक तरफ़ पुलिस गिरफ़्तारी की जल्दबाजी दिखा रही है तो दूसरी तरफ़ 90 दिनों के भीतर आरोपपत्र नहीं दाख़िल कर सकी। पुलिस लगातार समय बढ़ा रही है। धवन पुणे कोर्ट की तरफ़ से दी गई 90 दिनों की समय सीमा का हवाला दे रहे थे। एलगार परिषद केस में इन पाँचों एक्टिविस्टों को 6 जून को माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। इन पांचों  के अलावा रिप्बलिकन पैंथर पार्टी ऑफ इंडिया के सुधीर धावले, जाने-माने वक़ील सुरेंद्र गाडलिंग, एक्टिविस्ट रोना विल्सन, महेश राउत और नागपुर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर शोमा सेन को भी गिरफ़्तार किया गया था।

31 दिसंबर, 2017 को पुणे सिटी में एक विशाल रैली का आयोजन हुआ था। इस रैली का आयोजन दलितों ने जातीय अत्याचार के ख़िलाफ़ ऐतिहासिक संघर्ष की याद में किया था। 1818 में दलितों ने ब्रिटिश उपनिवेश के साथ मिलकर कथित ऊंची जाति हिन्दू शासकों ने जीत हासिल की थी। इस रैली के आयोजन का दक्षिणपंथी धड़ा विरोध कर रहा था और बाद में दोनों समुदायों के बीच हिंसक झड़प हो गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। पुलिस ने रैली के आयोजकों के ख़िलाफ़ जांच की और बताया कि रैली में भड़काऊ भाषण के कारण हिंसा भड़की। इसी जांच की बदौलत पांच और एक्टिविस्ट- सुरेंद्र गोडलिंग, शोमा सेन, रोना विल्सन, महेश राउत और सुधीर धावले को गिरफ़्तार किया गया। हालांकि इस गिरफ़्तारी को लेकर मीडिया में उस तरह से सवाल नहीं उठे थे। पुलिस का कहना है इनके ख़िलाफ़ संदिग्ध पत्र, ईमेल्स और दस्तावेज़ मिले हैं। हालांकि दूसरे पक्ष ने पुलिस के इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है।

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