16-17 जून 2013-उत्तराखंड आपदा का वो दर्दनाक महीना

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चार साल पहले आज के ही दिन उत्तराखंड में एक जल प्रलय आया था, जिसने पूरे देश और दुनियां में हडकंप मचा दिया। जी हाँ हम बात कर रहे हैं 16-17 जून 2013 की जब चार धाम यात्रा आपने चरम पर थी… उस समय चारधाम कर रहे यात्रियों को क्या पता था कि 16 जून की रात उनके लिए कहर लेकर आ रही थी। उत्तराखंड के चारधाम में मौसम का बदलना आम बात है। कभी वहां बारिश होने लगती है तो कभी मौसम साफ हो जाता है। उस रात भी  केदारनाथ के तीर्थयात्रियों को लगा कि आसमान से बरस रहा पानी सामान्य बारिश है। केदारनाथ धाम और केदार घाटी में लगातार हो रही बारिश बार -बार यात्रा को थाम रही थी…शायद वो भी एक बड़ी अनहोनी घटना की चेतावनी दे रही थी..लेकिन कोई भी इस चेतावनी को नही जान पाया… उन्हें क्या पता था कि यह पानी जल्द ही भारी प्रलय का रूप लेने वाला था। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित चारधाम में से एक केदारनाथ मंदिर में 16 जून की रात बादल फटने और ग्लेशियर टूटने से पानी का सैलाब आ गया। 16 और 17 जून, 2013 की रात केदारनाथ के ऊपर आये सैलाब ने उत्तराखंड के एक बड़े हिस्से को तहस-नहस करके रख दिया । हिमालय में ऐसी तबाही कभी किसी ने ना देखी थी और ना ही शायद देखी होगी। 16 जून 2013 को करीब 4.30 बजे शाम  को केदारपुरी के सामने भैरव शिला में कुछ लेंड स्लाइड हुआ जिससे केदार पूरी में हलचल होनी शुरू होने लगी….और केदारनाथ में शुरू हो गया तबाही का सिलसिला….धाम में बह रही मंदाकनी भी अपना रौद्र रूप धारण करने लगी, नदी के उस रौद्र रूप के बारे में सोच पाना भी मुश्किल था। करीब आठ बजे शाम तक केदारपुरी में मंदाकनी पर बना पुल जो की धाम और मुख्य रास्ते को जोड़ता था वो मंदाकनी के आगोश में बह गया….पुल बहने से हजारों श्रद्धालु धाम में फंस गए और केदारनाथ के चारों तरफ धीरे धीरे पानी बढ़ना शुरू हुआ..लेकिन तब भी किसी को इतने बड़े जलजले का अहसास तक नही था… केदार पूरी में 10 बजे रात तक सब शांत होने लगा और सभी यात्री और स्थनीय जनता राहत भरी साँस लेने लगी…लेकिन किसी को क्या आभास था कि एक बार शांत हुए जलजले के पीछे कोई बड़ा प्रलय छुपा है…और हुआ वही 17 जून 2013 को सुबह करीब 7.00  पर केदार मंदिर के पीछे करीब 3-4 किमी में बना चोराबाडी ताल में कुछ हल चल हुयी जिसने केदारपुरी से लेकर केदार घाटी तक का भूगोल बदल कर इतिहास में तब्दील कर दिया… चोरबाडी ताल में फटे गिलेशियर से धाम में एक जलजला शुरू हुआ…7.30 पर केदार धाम में जल प्रलय शुरू हुआ जिसने केदारपुरी में हर तरफ तबाही शुरू कर दी और मात्र मंदिर के अलावा पूरा धाम तबाह हुआ… ये सिलसिला यहीं नही थमा और करीब 7.40  तक रामबाड़ा जोकि केदारनाथ धाम का प्रमुख पड़ाव हैं वो भी इस जल प्रलय में समा गया और स्थिति ये रही कि रामबाड़ा में कुछ भी नही बच पाया… पहाड़ ढह-ढह कर गिरते रहे, नदियां अपने पूरे वेग से बड़ी-बड़ी इमारतों को मलबों में तबदील करती गई और अपने साथ बहाती ले गयीं। सैकड़ों वर्गमील का इलाका कुछ ही पल में श्मशान में बदल गया।

और करीब आठ बजे तक गोरीकुंड से लेकर सोनप्रयाग जलमग्न हो गया और प्रलयकारी उफान में हिमालयी धाम के डूबने के साथ ही देश भर से आए श्रद्धालुओं, पुजारी, व्यापारी और स्थानीय लोगों सहित करीब 5000 जिंदगियों को तबाह कर दिया।

पानी के साथ पहाड़ों के पत्थर भी बह रहे थे। मंदिर परिसर और हमेशा गुलजार रहने वाला रामबाड़ा इलाका पूरी तरह से पानी और पत्थरों की चपेट में आ गया। पानी की चपेट में आसपास के निर्माणधीन मकान, होटल तिनकों की तरह पानी में बह गए।
लोग जान बचाने के लिए पहाड़ों और पेड़ों की तरफ भागने लगे। रुद्रप्रयाग जिले में कई होटल औऱ इमारतें अलकनंदा नदी की उफनती धारा में बह गए।
केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में हज़ारो की तादाद में लोग फंसे हुए थे। 18 जून को सेना ने यात्रियों को बचाने के लिए ‘ऑपरेशन गंगा’ चलाया। उन्होंने पहाड़ी पर फंसे लोगों को बचाने के लिए हेलिकॉप्टर लगाए। सेना के अनुसार करीब 19,000 तीर्थयात्री उत्तराखंड में फंसे हुए थे। आपदा में फंसे लोगो को बचाने के लिए रक्षा मंत्रालय ने नौसेना के हेलीकॉप्टर और 10,000 सैनिकों को वर्षा से घिरे पर्वतीय राज्य में तैनात किया गया था। सेना के जवानों ने भी बचाव कार्य को तेजी से किया। केदारनाथ का वो मंजर काफी भयानक था ।

भले ही आज केदारनाथ त्रासदी की घटना को 4 साल हो चला हो और केदारनाथ के पुनर्निर्माण कार्य के पूरा होने के साथ ही आज केदारपुरी फिर से लोगों के आने जाने और सभी प्रकार के गतिविधियों के शुरू होने से गुलजार नजर आने लगी हो लेकिन लोगो के दिलों में आज भी उस घटना के ज़ख्म ताजा हैं।

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