ब्रह्मकमल – हिमालय की एक अनमोल विरासत

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बबीता रयाल

ब्रह्मकमल ऊँचाई वाले क्षेत्रों का एक दुर्लभ पुष्प है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल को इसका नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। यह एक ऐसा पुष्प हैं जो साल में केवल एक बार खिलता हैं। ब्रह्मकमल के नजदीकी प्रजाति हैं, सूर्यमुखी, गेंदा, गोभी, डहलिया कुसुम एवं भृंगराज जो इसी कुल के अन्य प्रमुख पौधे हैं।  इसे हिमालयों का राजा कहा जाता हैं, वर्तमान में भारत में इसकी लगभग 60 प्रजातियों की पहचान की गई है जिनमें से 50 से अधिक प्रजातियाँ हिमालय के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं।

उत्तराखंड में ये फूल कई स्थानों पर पाया जाता हैं। इसकी सुंदरता तथा दैवीय गुणों से प्रभावित हो कर ब्रह्मकमल को उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है। उत्तराखंड में यह विशेषतौर पर पिण्डारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक पाया जाता है। साल में एक बार खिलने वाले गुल बकावली को भी कई बार भ्रमवश ब्रह्मकमल मान लिया जाता है।  माना जाता है कि ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। दुर्लभता के इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। इसकी एक और खासियत भी हैं कि ये पुष्प कमल की तरह तो होता हैं लेकिन कमल पानी में उगता हैं और ये पुष्प जमीन पर उगता हैं।

ब्रह्मकमल कई नामों से भी जाना जाता हैं जैसे हिमालयी प्रदेश में दूधाफूल, कश्मार में गलगल, श्रीलंका में कदुफूल, और जापान में गेक्का विजीन जिसका शाब्दिक अर्थ हैं चांदनी रात की खुबसूरत स्त्री।

इस पुष्प की मादक सुगंध का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है जिसने द्रौपदी को इसे पाने के लिए व्याकुल कर दिया था। पिघलते हिमनद और उष्ण होती जलवायु के कारण इस दैवीय पुष्प पर संकट के बादल पहले ही गहरा रहे थे। भक्ति में डूबे श्रद्धालुओं द्वारा केदारनाथ में ब्रह्मकमल का अंधाधुँध दोहन भी इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है। इसी तरह हेमकुण्ट साहिब यात्रा में भी ब्रह्मकमल को चढ़ाने का रिवाज-सा बन गया है। पूजा-पाठ के उपयोग में आने वाला औषधीय गुणों से युक्त इस दुर्लभ पुष्प का  तीर्थयात्रीयों द्वारा अत्यधिक दोहन हो रहा हैं।

तीर्थ स्थानों में न सिर्फ प्राकृतिक परिस्थितियों के साथ मनमानी की जा रही है, बल्कि बेशकीमती स्थानीय प्रजातियों को भी नुकसान पहुँचाया जा रहा है। जैसे बद्रीनाथ में गंधमाधन तुलसी की बहुतायत थी। इसी तुलसी का अभिषेक भगवान बद्रीनाथ को किया जाता रहा है, पर अब इसकी माला बनाने से लेकर प्रसाद के रूप में अंधाधुँध तरीके से नोच खसोट कर इसका जो अंधाधुँध दोहन किया जा रहा है, उससे इसकी स्थिति काफी दयनीय हो चली है। इसी प्रकार ब्रह्मकमल जिसे भगवान ब्रह्मा के कमल का नाम दिया गया था, का भी अंधाधुँध दोहन के चलते अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। इनकी कमी के चलते बद्रीधाम मंदिर समिति ने उत्तराखंड सरकार से इनके संरक्षण के लिए गुहार भी लगाई है।

ब्रह्म कमल औषधिय गुणों से भी भरपूर हैं। इसके अंदर से निकलने वाले पानी को अमृत कहा जाता हैं, क्योंकि इसके सेवन से व्यक्ति में स्फूर्ति आ जाती हैं और उसकी थकान मिट जाती हैं। ब्रह्म कमल के फूलों की राख को शहद के साथ मिलाकर खाने से यकृत की वृध्दि रोकने में मदद मिलती हैं। यह मिर्गी के दौरे रोकने में भी सहायक होता हैं और घावो को भरने में भी सहायता मिलती हैं। इसे जीवाणुरोधी भी माना जाता हैं और इसका इस्तेमाल सर्दी- जुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता हैं। लोग इसके कपड़ो के बीच डालकर रखते हैं। इससे कपड़ों में कीड़े भी नहीं लगते हैं। मूत्र संबंधी रोगो में भी इसका उपयोग किया जाता हैं। भोटिया जाति के लोग इसे अपने घरों में लटकाकर रखते हैं क्योकिं उनका मानना हैं कि यह बिमारियों को आने से रोकता हैं। वियतनामी लोग इसका सूप बनाकर टॉनिक के रूप में पीते हैं। तिब्बती लोग इसका उपयोग लकवा और दिमागी रोगो के लिए करते हैं। यह जलोदर( ऐसा रोग जिसमें पेट में पानी भर जाता हैं) को दूर करने में भी उपयोगी हैं।

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