दुविधा में फसती राज्य सरकार…मुक़दमे को लेकर क्या करे-क्या न करे कि स्थिती..

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कांग्रेस के शासन काल के दौरान कोर्ट में दर्ज किया गया मुकदमा राज्य सरकार के गले कि फास बनता जा रहा है। मामला उत्तराखंड में हुए सियासी संग्राम के वक़्त का है जब सभी 9 बागी विधायको ने अपने स्वर बुलंद करते हुए कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी के हो लिए थे। विधायको में उमड़ते विरोधाभास और अपने सरकार को स्थिर करने के लिए पूर्व स्पीकर गोविन्द सिंह कुंजवाल ने सभी 9 विधायको कि विधायकी बर्खास्त कर दी थी जिसके चलते कांग्रेस ने प्रदेश में बहुमत साबित कर एक बार फिर सत्ता में वापसी कि थी।

लेकिन इस बर्खास्तगी से नाराज बागी विधायक कुवर प्रणव चैंपियन सहित उनके साथियों ने स्पीकर के इस फेसले को कोर्ट में चुनौती देते हुए इस बर्खास्तगी को ‘संवेधानिक आधिकारो का हनन’ बताया था। उच्च न्यायालय द्वारा पूर्ववर्ती रावत सरकार के पक्ष में सुनाये गये फैसला के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुँचा। सुप्रीम कोर्ट के दोनों पक्षों के अधिवक्ता मुकेश गिरी और अभिनव अग्रवाल ने बताया कि  इस मुक़दमे कि सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई कि अगली तारिक २५ अक्टूबर तय कि है।

लेकिन अब राज्य में बीजेपी कि सरकार है और मामला राज्य के स्पीकर के आधिकारो का है। तो अब मामला हुआ राज्य सरकार यानि कि बीजेपी बनाम बीजेपी पहले मामला था राज्य सरकार यानि कि कांग्रेस बनाम बागी विधायक (बीजेपी) इसलिए अब ये मुकदमा बीजेपी को न निगलते बन रहा है और न ही उगलते।

अगर इस सुनवाई में फैसला बागी विधायको के हक में आता है तो स्पीकर के बर्खास्तगी के आधिकार ख़त्म हो जायेंगे और आने वाले समय में उत्तराखंड में अगर फिर सयासी संग्राम जैसी स्थिति उत्पन्न हुई तो बीजेपी विधायकी बर्खास्त नहीं कर पायेगी वही अगर फैसले में स्पीकर के बर्खास्तगी को सही ठहराया जाता है तो बागी विधायक और बीजेपी के दावे झूठे साबित होंगे और सरकार को किरकिरी का सामना करना पड़ेगा।

इसी मुद्दे पर जब हैलो उत्तराखंड कि टीम ने विधान सभा स्पीकर प्रेम चंद अग्रवाल से बात कि तो स्पीकर मामले से बचते हुए नजर आये और कहा – इस मामले में कुछ भी कह पाना मेरे लिए मुश्किल होगा। वही प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा कि उच्चतम न्यायालय नि:संदेह सही फैसला करेगी, जो हर किसी को मंजूर भी होगा। इसी मुद्दे पर  कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है  कि विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार जस-के-तस रहने चाहिए, क्योंकि ये आधिकार स्पीकर के पद का मुलभूत आधिकार है।

बहरहाल इससे ये साफ़ झलकता है कि बीजेपी ये मुकदमा हजम नही कर पा रही है क्योंकि बीजेपी के सामने एक तरफ खाई है तो एक तरफ कुआ इसलिए बीजेपी मामले से बचने  में लगी है और कोर्ट में इस मामले को जितना हो सके उतना खीचने की कोशिश कर रही है।

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