दुविधा में छात्र – नारे लगाए या करें पढ़ाई

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रुद्रप्रयाग: नमामि गंगे अभियान के तहत गंगा को साफ करने के लिए अधिकारी भले ही करोडों रुपया खर्च कर रहे हैं, मगर रुद्रप्रयाग में चले स्वच्छता सेवा अभियान में सफाई करने के लिए बच्चों को हाथों से ही कूडा व गंदगी उठानी पडी। यहां तक कि अभियान से जुडे लोग बच्चों को धूप में रैली के जरिये धुमाते रहे और खुद फोटो खीचने में व्यस्त रहे।

नमामि गंगे योजना के तहत कल स्वच्छता सेवा जागरुक्ता अभियान चलाया गया जिसमें स्कूली बच्चों ने पहले तो बाजारों में रैली निकाली और फिर बेलनी रोड और संगम क्षेत्र में सफाई अभियान भी चलाया। बड़ी बात यह है कि आये दिन हर कार्यक्रम में बच्चों को स्कूल छोड रैली निकालने में जोड़ दिया जा रहा है, जिससे बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। अध्यापकों के डर से बच्चे तो कुछ नहीं बोले पर इतना जरुर कहा कि पढ़ाई तो बाधित होती ही है।

मुख्य विकास अधिकारी की माने तो स्वच्छता सबसे ज्यादा जरुरी है। जब बच्चे स्वस्थ रहेंगे तो ठीक से पढ़ाई भी कर पाएंगे। और स्वच्छता अभियान एक ऐसा अभियान है जिससे अधिकारों से लेकर बच्चों तक का जुड़ना बेहद जरुरी हैं।

नमामि गंगे की सहायक परियोजना प्रबन्धक और सोशियल एक्सपर्ट हेमलता डोंढियाल का कहना है कि बच्चे परिर्वतन का वाहक होते हैं इसलिए इस अभियान में बच्चों को जोड़ा जा रहा है। जहां तक पढ़ाई की बात है तो जागरुक्ता के लिए बच्चों का कुछ ही समय लिया जा रहा है।

आये दिन स्कूली बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़कर हर सरकारी और गैर सरकारी कार्यक्रम की रैली निकालते हुए सडकों पर दिख रहे हैं और हर कार्यक्रमों में कर्मचारी अभियान को धरातल पर क्रियान्वित करने के बजाय बच्चों से ही झाडू लगवाते हैं।

अब ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या करोडों रुपये खर्च होने के बावजूद भी सरकारी तन्त्र इतना कमजोर है कि अब हर काम बच्चों को ही करना होगा। आखिर कब तक सरकारी कर्मचारी केवल कागजी कार्यवाही को पूरा करने के लिए अभियान को फोटो तक सिमित करते रहेंगे और बच्चों को परिर्वतन के वाहक बता उनकी पढ़ाई को ताक में रखा जायेगा।

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