तोशी गांव की हालत पर हैलो उत्तराखंड का हल्ला बोल !!

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कल हमने आपको तोशी गांव की तकलीफों औऱ समस्याओं से रूबरू करवाया था। जिसके अंत में हमने आप से वादा किया था कि हम उस उस गांव में किरकारियों के न गूंजने की दास्तां आपको बताएगें। दरअसल तोशी गांव से सड़क तक की दूरी लगभग 10 किमी की है औऱ वहां से अस्पताल की दूरी है लगभग 30 से 35 किमी.।

इसलिए जब कोई महिला गर्भवती होती है तो उसे 4 से 5 महीने पहले ही उसके मायके या किसी रिश्तेदारों के घर भेज दिया जाता है ताकि जच्चा और बच्चा सुरक्षित रह सके । सड़क न होना उस गांव के लिए ऐसा अभिशाप है कि कई सालों से उस गांव में किसी भी बच्चे ने जन्म नहीं लिया है।

ये खबर जब हमें मिली तो हमने पत्रकारिता की जिम्मेदारी को समझते हुए न सिर्फ इस खबर को प्रकाशित किया बल्कि राज्य से लेकर केन्द्र तक सभी संबधित अधिकारियों के फोन खनखना डाले।

इस समस्या को लेकर जब हमने आईजी भारतीय (वन और वन जीवन ) सुमित्रा दास गुप्ता से बात की तो उनका यह कहना था कि पिछली सरकार ने जो सड़क को लेकर प्रपोजल भेजा था, उसमें नक्शा न होने के कारण वो स्वीकृत नहीं हो पाया। साथ ही उन्होनें कहा कि जनवरी 2017 में हमने एडिशनल मुख्य सचिव को पत्र लिखकर नक्शा भेजने की बात कही थी। अगर नक्शा राज्य सरकार हमको दे दे तो हम जल्द से जल्द इस पर कार्यवाही आगे बढ़ाए।

इसके बाद हमने  राज्य सरकार के जॉइंट सेक्रेटरी (वन औऱ पर्यावरण) आर.के तोमर से बात की तो उनका कहना था कि ये नक्शा प्रमुख वन संरक्षक ( वन्यजीव ) डी.बी.एस खाती द्वारा दिया जाना था जो अभी तक नहीं दिया गया है। डी.बी.एस खाती से जब नक्शा न देने का कारण पूछा गया तो उन्होने अपनी  सफाई देते हुए कहा कि वे नक्शा पहले ही दे चुके है। अगर उन्हें नक्शा नहीं मिला है तो फिर से एक बार नक्शा उन्हें दे दिया जाएगा।

प्रशासन की इससे बड़ी लापरवाही क्या होगी कि एक गांव जो सड़क की असुवधा से जूझ रहा हो, वहां एक नक्शे को लेकर एक विभाग दूसरे विभाग पर जिम्मेदारी डालकर अपना दामन बचा रहा हो। अब भी अगर इस मामले में प्रशासन सुस्त बना रहा तो इस लापरवाही की जवाबदेही सम्बंधित अधिकारियों को  मुश्किल में डाल सकती है।

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