उत्तरा पंत बहुगुणा की चिठ्ठी : नौ मण छांछ जो नंदु खुद पी जाता है ! उस नंदु के पास क्या जाना छांछ मांगने ! 

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मुख्य मंत्री जी / शिक्षा मंत्री जी 
उत्तराखंड सरकार 
देहरादून ! 
विषय — महिला शिक्षिका की अनदेखी करना ! 
मेरे द्वारा आप दोनों को व्यक्तिगत रूप से मिलकर लिखित और मौखिक शिकायत की गई ! लेकिन खेद है कि आप दोनों ने ही इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं की ! आप उत्तराखंड के विकास के लिए केन्द्र सरकार से धन की माँग करते हैं ! जो की पूरी की जाती है ! मैंने आपसे ना ही आपके निजी धन की माँग की है ! और ना ही सरकारी खजाने से कुछ माँगा है ! मैंने योग्यता के आधार पर जीवन यापन हेतु जो पद हासिल किया था ! उसके लिए न्याय की गुहार लगाई थी ! जिस पर मेरे बच्चों का भविष्य निर्भर है ! उत्तराखंड राज्य में उत्तराखंड की बेटी के साथ ये अन्याय किस आधार पर किया जा रहा है ! जबकि मेरे द्वारा कोई भी गलती नहीं की गई है ! यदि सबको ये लगता है तो मैं बार बार जाँच करने के लिए खुद लिखित रूप में कह रही हूँ ! फिर जाँच करने में परेशानी किस बात की ! यदि किसी की ईमानदारी और नियत को परखना है तो सबके निजी खातों की और चल अचल सम्पति की जाँच करवाई जाए ! दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा ! कुछ नहीं हो सकता है ! तो उत्तराखंड के विकास के लिए देवी देवताओं की डोली नचाना और बात बात पर उनकी कसमें खाना भी छोड़ दीजिए ! क्योंकि वो भी इतने अपवित्र हो गए हैं कि किसी असहाय की मदद करने में असहाय हो गए हैं ! 


सरकार को देख कर एक कहावत याद आ रही है –
नौ मण छांछ जो नंदु खुद पी जाता है ! उस नंदु के पास क्या जाना छांछ मांगने ! 
मुझे परेशान करने का कारण ये है कि मेरी अनुपस्थिति में विद्यालय के ताले तोड़ कर मध्याहन भोजन के कुछ माह के बाउचर चोरी हुए हैं ! उसका सबूत मुझ से माँगा जा रहा है ! जबकि मैं शासन के गलत आदेश का पालन करते हुए दूसरे विद्यालय में तैनात थी ! ताले टूटने की मुझे कोई सूचना नहीं दी गई थी ! परिस्थितियों को देखकर साफ जाहिर है कि ये मेरे साथ मेरे पति का देहान्त होते ही सोची समझी चाल है ! चालें तो पति के रहते भी बहुत चली गई ! मगर इतना बुरा नहीं कर पाए !

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