पलायन की मार से गाँव खोते जा रहे अपनी विशिष्ट पहचान

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बागेश्वर: पलायन का दंश झेल रहे प्रदेश के पहाड़ी जिलों में अब इसका असर कृषि पर भी देखने को मिल रहा है। इन क्षेत्रों की विशेष पहचान बन चुकी कई विशेष अनाज की फसलें, कुछ पलायन के कारण और कुछ सरकार की उपेक्षा के चलते आज विलुप्ति की कगार पर हैं। ऐसा ही एक उदाहरण बागेश्वर के कांडा तहसील के नरगोली गाँव में देखने को मिला है। जहाँ कभी बासमती, हंसराज जैसी श्रेष्ठ चावल की उपज होती थी। लेकिन आज इस फसल को जैसे ग्रहण लग चुका है, अब गाँव में सिर्फ इक्का-दुका परिवार ही इस फसल को उगाते हैं। इस ग्रामसभा से ज्यादातर लोग पलयान कर चुके हैं और इस वजह से ये फसल संकट में है।

इस बासमती चावल के कारण ही नरगोली गाँव की एक विशेष पहचान थी। इसी विशेषता के चलते क्षेत्र में एक कुमाऊँनी कहावत भी प्रचलित थी कि, ‘बेरीनाग क चाह, नरगोली की बासमेती, कमस्यारी क धाना और मल देश क ज्वाना।‘ कहावत का अर्थ ही स्प्ष्ट कर रहा है कि, बेरीनाग की चाय सबसे अच्छी मानी जाती है और नरगोली की बासमती श्रेष्ठ मानी जाती है। कमस्यार घाटी कॉडा के नीचे वाला क्षेत्र धपोलासेरा, सानिउडियार और रावतसेरा में धान की पैदावार अच्छी होती है और मलदेश का ज्वाना का मतलब, मल्ला दानपुर के लोग काफी बलशाली होते हैं। लेकिन आज यह बस कहावत ही बन कर रह गई है।

वहीँ ग्रामीणो का कहना है कि, पहले गाँव में बासमती चावल लोग खूब उगाते थे और इसका  व्यापार भी करते थे। लेकिन धीरे-धीरे लोगों का पलायन होना और खेती के प्रति नये लोगों की रूचि कम होने के कारण बासमती चावल का उत्पादन कम होता चला गया। नरगोली गाँव को कुदरत ने ऐसा कुछ ऐसे बनाया है कि, यहाँ उच्च व श्रेष्ठ क्वालटी की पैदावार होती है। ऐसे में  यदि अभी भी बासमती चावल व्यसायिक रूप से पैदा किया जाय और बाजारीकरण की सुविधा मिले तो अभी भी गाँव व क्षेत्र में रोजगार के नये अवसर सृजित हो सकते हैं।

इस गाँव में 71 साल बाद रोड पहुंची है, तो ऐसे में जो लोग रोजगार की तलाश में शहरों का रूख कर चुके हैं, रोजगार के अवसर गाँव में ही मिलने से उनकी भी वापस लौटने की उम्मीद बढ़ जाएगी। जिससे गाँव विकास विकास के पथ पर आगे बढ़ सके।

वहीँ मुख्य कृषि अधिकारी वीके मोर्या का कहना है कि, हमारे द्वारा समय-समय पर किसान कल्याण दिवस व चैपालें लगायी जाती हैं। साथ ही समय-समय पर किसानों को आधुनिक तरीके से खेती के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

हालाँकि, ग्रामीणों की माने तो प्रशाशनिक अमला एवं विभाग लाख दावे कर ले लेकिन, इस दुर्गम गाँव में आज तक कृषि विभाग की कोई योजना नहीं चल सकी। ऐसे में विभाग के साथ ही सरकार की निति भी कई सवालों के घेरे में कड़ी होती है।

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