नौकरी नहीं, कमाई आयोग बना यूकेएसएसएससी

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प्रदीप रावत (रवांल्टा)
सरकार आप कर क्या रहे हो? यह महज एक सवाल नहीं है। राजनीति करो या कुछ और लेकिन, प्रदेश के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ तो मत करो। उत्तराखंड अधिनस्थ सेवा चयन आयोग भी गजब कर रहा है। प्रदेश में समूह ग और लोकसेवा आयोग के बाहर के पदों के लिए परीक्षा करवा रहा है। परीक्षा कराने में कोई एतराज नहीं है। खूब परीक्षाएं कराइए, लेकिन जिस तरह से युवाओं से लूट हो रही है। दोहरी लूट। पहली यह कि उनसे अवसर छीने जा रहे हैं। इस लूट को मैं ज्यादा गंभीर मानता हूं। दूसरी लूट की चर्चा आगे करूंगा।

उत्तराखंड अधिनस्थ सेवा चयन आयोग ने परीक्षा संपन्न कराने के लिए परीक्षक और परीक्षा केंद्र नहीं मिलने का बहाना बनाकर छह से सात पेपरों को एक ही प्रवेश पत्र पर कंबाइंड परीक्षा के आधार पर करा रहा है। चाहे अभ्यर्थी ने किसी भी विभाग और पद के लिए आवेदन किया हो। परीक्षा सभी की एक ही होगी। अब थोडा़ डिटेल से बात करते हैं। आयोग ने प्रवेश पत्र जारी किए। अलग-अलग विभागों के अलग पदों की परीक्षा एक ही प्रवेश पत्र पर करा दी गई।

मसलन किसी ने नलकूप चालक का फार्म, कंप्यूटर आॅपरेटर, राजस्व सहायक, कनिष्ठ सहायक और भी कई पद। इन सबके लिए योग्यता एक ही रखी गई और पेपर भी एक ही कराया गया। सवाल यह है कि क्या नलकूप चालक और कंप्यूटर आॅपरेटर का एक ही पेपर हो सकता है। राजस्व सहायक एकदम अलग है। इसके साथ कंप्यूटर आॅपरेटर को कैसे शामिल किया जा सकता है। इससे हो यह रहा है कि यदि किसी अभ्यर्थी ने पांच-छह पदों के अलग फार्म भरें हैं, आयोग ने उससे अलग-अलग पेपर दने का हक छीनने के साथ ही उससे उतने अवसर भी छीन लिये।

दरअसल, होता यह है कि अभ्यर्थी इस आस में रहता है कि अगर उसका एक पेपर खराब हुआ या किसी कारण नहीं दे पाया, तो उसे दूसरे पेपर से आस रहती है। लेकिन, आयोग ने दूसरे का विकल्प ही समाप्त कर दिया। इससे प्रदेश के हजारों युवाओं को नुकसान हुआ है। युवा परेशान हैं। आयोग से शिकायत भी कर चुके। सरकार के कान तक भी बात पहुंची, लेकिन सरकार को सुनाई नहीं दिया। क्या सरकार को इस प्रक्रिया को समाप्त नहीं कर देना चाहिए। खैर सरकार को क्या फर्क पड़ता है। उनको तो बस वोट चाहिए होता है। युवा लुटें या फिर बेरोजगारी का दर्द झेलें।

दूसरी लूट का नाम है आर्थिक लूट। सरकार और आयोग ने एक-एक फार्म भरने की फीस 300 रुपये के साथ जीएसटी भी जोड़ा जा रहा है। इस तरह अगर कोई एक युवक सात फार्म भरता है तो उसकी जेब से सीधे-सीधे 2100 प्लस जीएसटी जाता है। 2100 रुपये किसी भी बेरोजगार के लिए बहुत बड़ी रकम होती है। उस पर जीएसटी की मार अलग से। इस तरह अगर प्रदेश में 80,000 जनरल कैटेगरी के युवा फार्म भरते हैं, तो सरकार उनसे करीब 17 लाख रुपये की कमाई करती है। इसमें जीएसटी की रकम को जोड़ दिया जाए तो रकम और बड़ी हो सकती है। इसी तरह ओबीसी, एससी, एसटी के छात्रों से भी 150 रुपये की फीस वसूली जा रही है। असल बात यह है कि सरकार को अगर सभी फार्म का एक ही पेपर कराना है, तो युवाओं से अलग-अलग फार्म क्यों भरवाये जा रहे हैं। इससे एक बात साफ है कि सरकार ने आयोग को नौकरी देने के लिए नहीं, बल्कि कमाई का जरिया बनाया है।

इन्हीं सब मुद्दों को लेकर जब बेरोजगार युवा प्रदर्शन कर रहे थे, तो सरकार ने लाठियों से उनकी आवाज को बंद करवा दिया। कुल मिलाकर सरकार किसी की सुनना ही नहीं चाहती। दूसरी बात यह कि प्रदेश में बेरोजगारी भत्ता दिया जा रहा था। सरकार ने उसको भी बंद कर दिया। कम से कम युवा भत्ते से अपना फार्म तो भर लेते। सरकार को ना तो बेरोजगारों से हमदर्दी है और ना आम जनता से। उनको अपने विधायकों की जेबें भारी करने में ही मजा आता है। गैरसैंण विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों का वेतन तीन गुना तक बढ़ा दिया था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार किस तरह युवाओं को लूट कर जनता के फर्जी सेवकों की जेब भारी कर रही है। सरकार जागिए। वरना यही युवा आपके 15 साल तक राज करने के सपने को चकनाचूर कर देंगे। युवाओं के सब्र का यह बांध जिस दिन टूटेगा। उस दिन ना आप बचेंगे और ना आपके सपने। जिनको आप अभी कमाई का जरिया बना रहे हैं। वो आपकी बर्बादी का कारण बनेंगे। फिर आपके पास चुनावी बयानों के अलावा कुछ नहीं बचेगा। बस किश्मत को ही दोष देते रह जाएंगे। यह बस सलाह है। आपकी मर्जी आप इसे सलाह के तौर पर लें या विरोध के रूप में…।
…बेरोजगार युवा

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