कोदा-झंगोरा और सुख समृद्धि का प्रतीक है दुबड़ी, जानिए जौनपुर की यह परंपरा..

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-कृष्णपाल सिंह रावत
जौनपुर: थत्युङ लोक परंपराओं और लोक संस्कृति के लिए पूरे उत्तराखंड में जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां 12 महीनों में 12 त्यौहार मनाए जाते हैं। भादों के महीने में दुबडी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। आपको बता दें यह त्यौहार ठक्कर कुदाऊं टकारना गेड मुंगलोडी ऐरी शीर्ष डिगोन तेवा बंगसील खेडा लगड़ासू मोगी आदि के लिए ग्रामीण अपने गांव की सुख, समृद्धि के लिए अपने कुल इष्ट देवता की पूजा अर्चना करते हैं। भादों के महीने में गांव के खेत स्थानीय फसलें झंगोरा मंडुवा कोणी  मारसा मक्का आदि से लहला रहे होते हैं। जितने भी अनाज की फसलें खेतों में होती हैं। उन सभी को थोड़ा थोड़ा उखाड़ करके लाते हैं और उनका सामूहिक रूप से बड़ा गट्ठर बांधकर गांव के पंचायती चौक में गाढ़ा जाता है और उसके बाद गांव की महिलाएं रहीणे ध्याणी दुबडी की पूजा अर्चना करते है और उसके बाद गांव में आए हुए मेहमानों जिन्हें स्थानीय भाषा में पोणे कहा जाता है। रासों नृत्य करने के पश्चात दुबडी को तोड़ दिया जाता है गांव के सभी पुरुष और महिलाएं ढोल दमाऊ की ताल पर पारंपरिक वेशभूषा में ढोल दमाऊ की ताल पर रासो एवं तांदी नृत्य करते हैं। इस मौके पर ग्रामीणों द्वारा पांडव नृत्य भी किया जाता है व विभिन्न देवों के पसुवा भी अवतरित होते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता संजय गुसाई ने जानकारी देते हुए कहा कि दुबडी के त्यौहार के दिन जो गांव के लोग रोजगार एवं शिक्षा के लिए शहरों शहरों में गए हैं वो सभी लोग इस दिन घर आते हैं और अपने इस दुबडी के त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस त्यौहार में एक गांव की सुख समृद्धि एवं भाईचारा तथा खेतों में बोई फसलों की अच्छी उपज के लिए अपने कुल ईस्ट देवता की पूजा अर्चना की जाती है। उन्होंने आधुनिक युग में चिंता जाहिर करते हुए कहां की गांव में भी पश्चिमी सभ्यता धीरे धीरे पास आ रही है और लोग अपनी संस्कृति सभ्यता रीति रिवाज परंपरा स्थानीय लोक नृत्य लोक गीत धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है।

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