हिमालयन हॉस्पिटल व अन्य की पुनर्विचार याचिका खारिज

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नैनीताल: हाईकोर्ट ने पूर्व आदेश में राज्य में बगैर लाइसेंस तथा क्लिनिकल एस्टैब‌लिशमेंट्स रजिस्ट्रेशन एंड रेग्यूलेशंस एक्ट 2010 के तहत पंजीकृत न हुए सभी अस्पतालों और क्लिनिक सील करने के आदेश देते हुए अस्पतालों द्वारा ब्रांडेड दवाएं लिखे जाने पर रोक लगाई थी। कोर्ट ने सरकार को सरकारी व निजी अस्पतालों में डायग्नोस्टिक परीक्षणों के शुल्क निर्धारित करने के निर्देश दिए थे। इस आदेश में संशोधन के लिए हिमालयन हॉस्पिटल एसआरएचयू कैंपस जौली ग्रांट देहरादून व सेनेरजी इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल हॉस्पिटल ने पुर्नविचार याचिका दायर की थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। साथ की कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राज्य सरकार सभी गर्वमेंट सेक्टर, पब्लिक सेक्टर व प्राईवेट क्लीनिक को कंप्यूटर दें जिसमें वे मरीजों की मेडिकल से संबंधित रिपोर्ट व एटेंडेंस का ब्यौरा रखेंगे। कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी कहा है कि वे ‌सरकारी मेडिकल आफिसर को अतिशीघ्र कंप्यूटर व प्रिंटर की सुविधा उपलब्ध कराएं।

कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार बाजपुर निवासी अहमद नबी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि बाजपुर में दोराहा स्थित बीडी अस्पताल तथा पब्लिक अस्पताल केलाखेडा बगैर रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं। मार्च 2016 में सीएमओ ने इन्हें नोटिस भी भेजा था। पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य जताया था कि इन चिकित्सालयों में सर्जरी के लिए पेशेंट तो भर्ती पाए गए लेकिन वहां एक भी डाक्टर एमबीबीएस तथा सर्जरी करने की अधिकृत डिग्री वाला नहीं था और बिना डिग्री के डाक्टर आपरेशन करते थे। इनमें केवल होमयोपैथिक व यूनानी चिकित्सा डिग्रीधारी डाक्टर हैं जो आपरेशन करने के अधिकृत नहीं है। कोर्ट ने पाया कि मई 2018 में सीएमओ ने ऐसे चिकित्सालयों के खिलाफ कार्यवाही के आदेश दिए थे लेकिन इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। मामले में सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक प्रत्यावेदन देकर कहा था कि क्लिनिकल एस्टैब‌लिशमेंट्स रजिस्ट्रेशन एंड रेग्यूलेशंस एक्ट 2010 के तहत पंजीकरण कराने से चिकित्सालयों में इलाज कराने का खर्चा पांच गुना तक बढ जाएगा। आईएमए ने इस आधार पर अनुरोध किया था कि पंजीकरण कराने का आदेश स्थगित कर दिया जाए। जिस पर डीएम नैनीताल ने सचिव चिकित्सा से लाईसेंस बनाया जाना पेंडिंग रखने को कहा था। कोर्ट ने सुनवाई के बाद राज्य में ऐसे सभी चिकित्सालयों को सील करने के निर्देश जारी किये जो बगैर लाईसेंस व पंजीकरण के चल रहे है। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि उत्तराखंड सरकार ने बनाए गए प्रावधानों को चिकित्सालयों में लागू ही नहीं किया। कोर्ट ने निर्देश दिए कि इनके संचालन के लिये मौजूदा प्रावधानों और कानून का सख्ती से पालन किया जाए तथा सरकार निजी एवं सरकारी अस्पतालों में विभिन्न मेडिकल जांचों और परीक्षणों का शुल्क भी निर्धारित करे। कोर्ट ने सभी चिकित्सालयों को यह भी आदेश दिया कि वे विभिन्न परीक्षणों के नाम पर मरीजों की अनावश्यक जांच न करवाएं। कोर्ट ने कहा कि सभी सरकारी और गैर सरकारी चिकित्सालय मरीजों से ब्रांडेड दवाइयां खरीदने को न कहें और केवल जेनेरिक दवाइयां ही लिखें। कोर्ट ने कहा कि चिकित्सालयों में आईसीयू की एक दीवार शीशे से निर्मित की जाए जिससे मरीज के परिजन उसे देख सकें, चिकित्सालय हर 12 घंटे में परिजनों को मरीज के स्वास्थ्य की जानकारी दें।

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