डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट को दी गई अंतिम विदाई

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अल्मोड़ा: अल्मोड़ा के वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक, प्रखर वक्ता और उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट का देर रात्रि निधन हो गया। वह 69 वर्ष के थे और पिछले 4 वर्षो से शुगर और गुर्दे की तकलीफ के कारण अस्वस्थ चल रहे थे। डॉ. बिष्ट के चले जाने से राज्य आंदोलनकारी व देश-विदेश के सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ता स्तब्ध है। वहीं आज उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई। जहाँ विश्वनाथ घाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया। समाजसेवी, पत्रकारों, राजनीतिज्ञ, आंदोलनकरियो ने विश्वनाथ घाट में जन गीत गा कर उनको अंतिम विदाई दी। उनकी अंतिम यात्रा में केंद्रीय राज्य कपड़ा मंत्री अजय टम्टा, राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल सहित कई आंदोलनकारी, समाजसेवी, पत्रकार, राजनीतिज्ञ मौजूद रहे।

बता दें कि डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट विश्वविद्यालय आंदोलन, नशा नही रोजगार दो आंदोलन, चिपको आंदोलन, राज्य आंदोलन के अगुवा रहे हैं। नशा नही रोजगार दो आंदोलन में वह 40 दिन जेल में रहे। जंगलों की नीलामी के खिलाफ 27  नवंबर 1977 को नैनीताल में हुए प्रदर्शन में वह आगे रहे इस प्रदर्शन के बाद रहस्यमय तरीके से नैनीताल क्लब जलकर खाक हो गया था। जब पौड़ी में जुझारू पत्रकार उमेश डोभाल की हत्या हुई तो पौड़ी से लेकर दिल्ली तक शराब माफिया मनमोहन सिंह नेगी का खौफ था और कोई भी मनमोहन के खिलाफ बोल नही रहा था। ऐेसे में अल्मोड़ा से डॉ.  शमशेर सिंह बिष्ट और रघु तिवारी ने आकर खौफ के सन्नाटे को तोड़ते हुए पौड़ी की सड़कों पर मनमोहन के खिलाफ जमकर नारे लगाये और उमेश डोभाल के हत्यारों को पकड़ने के लिये आंदोलन को तेज किया। यह उनका रणनीतिक कौशल ही था कि राज्य आंदोलन में भी उनकी अहम भूमिका रही। अल्मोड़़ा में उन्होने सर्वदलीय संघर्ष समिति के बैनर तले सभी ताकतों को एक मंच पर एकत्रित कर दिया था।

वहीं वरिष्ठ पत्रकार, आंदोलनकारी, समाजसेवी, राजनीतिज्ञ का कहना है  कि डॉ. बिष्ट के निधन से राज्य ने अपना एक हितैषी खो दिया है। वह एक ऐसी शख्ससियत थे जो कि सत्ता के दमन से कभी नहीं डरे और हमेशा जनता के पक्ष में आवाज बुलंद करते रहे। उन्होंने कहा कि डॉ. बिष्ट ने कभी भी अपनी विचारधारा से समझौता नही किया।

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