…विवादों का आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय

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देहरादून: आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय और विवादों का पुराना नाता रहा है। 2009 में अस्तित्व में आया उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों में हैं। विश्व विद्यालय में भर्ती प्रक्रिया को लेकर खड़ा हुआ विवाद कोई पहला मामला नहीं है। विवादों के इस विश्व विद्यालय में इससे पहले भी कई विवाद सामने आ चुके हैं। लागार हो रहे विवादों से न तो सरकार को कुछ फर्क पड़ता है और ना मोटी पगार पानेे वाले अधिकारियों को। इसका सीध और तीखा असर उन नौजवानों पर पड़ता है, जो यहां आयुर्वेदिक डाॅक्टर और शिक्षक बनने का सपना लेकर आते हैं। लागातार हो रहे विवादों ने विवि को पूरी तरह सवालों के ढेर पर लाकर खड़ा कर दिया है। यह आयुर्वेदिक कम, विवादों की यूनिर्सिटी ज्यादा नजर आ रही है।

आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय अपनी उपलब्ध्यिों से कहीं अधिक, विवादों के लिए जाना जाता है। अगर गिनना शुरू करें तो उपलब्ध्यिों की लिस्ट नजर ही नहीं आएगी। विवादों की बात करें तो इनकी फेहरिस्त बहुत लंबी है। यहां सिलसिलेवार विवाद होते रहे हैं। मसलन विश्वविद्यालय में टेंडर घपला भी सामने आया। लगभग एक करोड़ की खरीद को लेकर भी सवाल खड़े हुए थे। दो साल पहले आयुष प्री मेडिकल टेस्ट (यूएपीएमटी) में नौ मुन्नाभाई पकड़े जा चुके हैं। लैब उपकरणों की खरीद नियम विरुद्ध की गई थी, जिस पर तब विश्वविद्याय के कुलपति ने ही रोक लगा दी थी। शिक्षक भर्ती को लेकर विवाद हुआ, उस भर्ती को ही बाद में रोक दिया गया। अब नया मामला आयुर्वेदिक मेडिकल आफिसर भर्ती का है। विश्वविद्यालय ने पूरी भर्ती परीक्षा को ही फिक्स कर दिया।

यह कोई छोटा मामला नहीं है। विधायकों और नेताओं के अलावा छात्रों को पेपर कोड बाकायदा मैसेज कर बताए जाने की बातें सामने आई हैं। आयुष मंत्री ने जांच करने के आदेश तो दिए हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या जांच इमनादारी से होगी। विश्वविद्यालय में एक के बाद एक कई विवाद सामने आ चुके हैं। आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय आयुर्वेदिक डाॅक्टर कम, विवाद ज्यादा पैदा करने लगा है। आखिर कब तक विश्वविद्यालय इस तरह के घपले और घोटोले कर युवाओं के भविष्य से खेलता रहेगा। इस पर सरकार को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। ऐसा ना हो कि यूनिवर्सिटी केवल विवादों की ही यूनिवर्सिटी ना बनकर रहे जाए।
...प्रदीप रावत (रंवाल्टा)

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