उत्तराखंड: ऐतिहासिक मौण मेले में नदी में हजारों लोगों ने पकड़ी मछलियाँ, जानिए विशेषता..

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मसूरी: पहाडों की रानी मसूरी के समीप जौनपूर क्षेत्र में मनाये जाने वाले ऐतिहासिक व पौराणिक मौण मेला (मछली पकडने का त्यौहार) बडी धूमधाम के साथ मनाया गया। कभी टिहरी नरेश भी इस अनोखे पर्व को देखने के लिये मौण में शिरकत किया करते थे। अटठजुला के लोगों ने अगलाड नदी और यमुना के संगम पर मौण कटटा नामक जगह पर बाध्य यंत्रो की थाप और पारम्परिक रिति रिवाजों से नदी में टिमरू का पाउडर डाला। टिमरू नदी में डालने से मछलियां दम तो नही तोडती लेकिन बेहोश हो जाती है, जिसको लोग आसानी से पकड सकते है।
बता दें कि एक साथ सामुहिक तौर पर मछली पकडने का यह अनोखा मेला है, जो प्रदेश के मात्र जौनपूर क्षेत्र में देश आजादी के पूर्व से ही जून के आखरी और वर्षाऋतु के प्रथम सप्ताह मनाया जाता है। इस मेले में जनपद टिहरी के साथ ही देहरादून-उत्तरकाशी से बडी तादात में लोगों ने शिरकत की।
मौण डालने के साथ ही सैकडों की संख्या में लोग नदी में कूदे और मछलियां पकडने में जुटे। हंसी मजाक और स्थानीय लोक गीतों के संग हर किसी ने इस पर्व का आनन्द लिया। किसी के हाथ छोटी मछली तो किसी ने से किलो तक की मछलियां पकडी। मछली पकडने नदी में उतरे लोगों का उत्साह भी कहीं कम नही रहा। अटठजुला खत का सयाणा जवाहर सिह राणा ने बताया कि मौण का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है जिसमे हर वर्ष एक खत को मौण डालने का जिम्मा मिलता है। उसी खत के लोग टिमरू की छाल निकालते है और विधिक रूप से मौण को तैयार करते है। उसी पाउडर को नदी में छोडा जाता है, जिसके डालने से मछलियां बेहोश हो जाती है और लोग उनको पकडते हैं। वही मौण में मछली पकडने आये महिपाल सजवाण का कहना है कि यह त्यौहार अन्य तीज त्यौहारों से हटकर है। एक साथ सैकडो लोग नदी के बहाव में मछली पकडते है।

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